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________________ १७४ रिठ्ठणे मिचरिउ कहिं णासहु महु कमवहे पाडिय सयल-वि करमि सिलीमुह-झाडिय को सहएउ णउलु को अज्जुणु को तुहुं कवणु राउ को तहो गुणु ८ घत्ता रणंगणहो मज्झे तं वोल्लिज्जइ जं सरइ। कुरु-केसरि-विंदे पंडव-हरिणु किं पइसरइ॥ [१२] धाइउ तो स-कसाउ विओयरु णच्चइ थियउ दूरु दामोयरु अजु महा पइज्ज परिपुज्जउ धम्म-पुत्तु कुरु-जंगलु भुंजउ सिद्ध कज्जु लइ अच्छइ थोडउं वद्धउ जण्णसेणि आमोडउं वाण-पंति वच्छत्थलु भिंदउ असिवरु णिसिय-धारु सिरु छिंदउ ४ आमिसु णेतु विहंगम उप्परि सेणिउ पियउ हिडिंवा-सुंदरि डहउ हड्ड-विछड्ड हुवासणु किर चिंतवइ एम गरुडासणु तो पंडवेण पिसक्केहिं छाइउ कहिं दूसासणु जाहि अघाइउ किव-कियवम्म-कलिंगहं अक्खहि जिवं दुजोहणु जिवं तुहं रक्खहि ८ घत्ता दरिसावमि अज्जु सव्वहं दुण्णय-दुमय-फलु। रण-देवय-मूले थवमि तुहारउ सिर-कमलु॥ [१३] कहि कहि धायरट्ठ परमत्थे कड्डिय जण्णसेणि के हत्थे तो जुयराउ वुत्तु जुयराएं दोवइ करेणायड्डिय आएं एहु जे पंडव-परिहवगारउ एहु जे विहल-जणब्भुद्धारउ एहु जे मयगय-गलगल-थक्कणु एहु जे अलमल-पर-वल-पेल्लणु ४ एहु जे कामिणि-घण-थण-चड्डणु एहु जे दुम्मुह-मुह-ओमड्डणु एहु जे कंचण-वलयालंकिउ एहु जे णरवर-घाय-किणकिउ एहु जे दिण्ण-दाणु सुह-लक्खणु एहु जे सरणाइगय-परिरक्खणु एहु जे सुरवर-करि-कर-दीहरु एहु जे पंच-फणामणि विसहरु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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