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रिट्ठणे मिचरिउ
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उप्पाय जाय तहिं ताम तहो हड्डइं पडंति गयणंगणहो धूमंति रएण दिसा-मुहइं कुरु-वले वलंति पवलाउहई वालहिं फुल्लंति तुरंगमहं अ-सिवई सुम्मंति विहंगमहं महि कंपइ दिणमणि थरहरइ चंपाहिउ पर-वले पइसरइ गंगेय-दोण तो दिट्ठ रणे सीहाहय णं मायंग वणे णं चंदाइच्च राहु-झडिय णं इंद-पडिंद वे-वि पडिय रवि-सुएण ण जोइय णविय थुय किय सामिय-दोहा होवि मुय अण्णु वि जो को-वि दोहु करइ सो सव्वु महाहवे महु मरइ
घत्ता जं दितउ दीणाणाहहं दियवर-मागह-भुय-भूसणहं । तं तेत्तिउ तहो धणु पावइ जो णर-णारायण दावइ ।
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[१०] जो णर-णारायण दक्खवइ तहो देमि अज्जु मद्दाहिवइ सउ दासिहिं सउ वर-कामिणिहिं। चउ चउ सय गोवइ-णंदिणिहिं उत्तमहं तुरंगहं पंच सय
अट्ठ रह दासहं अट्ठ सय दस हत्थि चउद्दह पत्तणइं
अवरइ-मि रयण-मणि-कंचणइं तो भणइ सल्लु अहो आहिरहि किं दविणु अपत्तेहिं विक्खिरहि जइ अत्थि को वि तउ वंधु-जणु । तो किं ण णिवारइ दिंतु धणु पाहाण णिवंधेवि णियय-गले उत्तरेवि समिच्छहि उवहि-जले दीसेसइ सई जे धणंजयहो कइ विप्फुरंतु उप्परि धयहो
घत्ता महसूयणु जासु सहेजउ सहुं सुरेहिं पुरंदरु विज्जउ । तुहुं कण्ण जइ वि अइ भल्लउ ण पहुच्चहि तहो एक्कल्लउ ।।
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