SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिट्ठणे मिचरिउ १३० उप्पाय जाय तहिं ताम तहो हड्डइं पडंति गयणंगणहो धूमंति रएण दिसा-मुहइं कुरु-वले वलंति पवलाउहई वालहिं फुल्लंति तुरंगमहं अ-सिवई सुम्मंति विहंगमहं महि कंपइ दिणमणि थरहरइ चंपाहिउ पर-वले पइसरइ गंगेय-दोण तो दिट्ठ रणे सीहाहय णं मायंग वणे णं चंदाइच्च राहु-झडिय णं इंद-पडिंद वे-वि पडिय रवि-सुएण ण जोइय णविय थुय किय सामिय-दोहा होवि मुय अण्णु वि जो को-वि दोहु करइ सो सव्वु महाहवे महु मरइ घत्ता जं दितउ दीणाणाहहं दियवर-मागह-भुय-भूसणहं । तं तेत्तिउ तहो धणु पावइ जो णर-णारायण दावइ । ४ [१०] जो णर-णारायण दक्खवइ तहो देमि अज्जु मद्दाहिवइ सउ दासिहिं सउ वर-कामिणिहिं। चउ चउ सय गोवइ-णंदिणिहिं उत्तमहं तुरंगहं पंच सय अट्ठ रह दासहं अट्ठ सय दस हत्थि चउद्दह पत्तणइं अवरइ-मि रयण-मणि-कंचणइं तो भणइ सल्लु अहो आहिरहि किं दविणु अपत्तेहिं विक्खिरहि जइ अत्थि को वि तउ वंधु-जणु । तो किं ण णिवारइ दिंतु धणु पाहाण णिवंधेवि णियय-गले उत्तरेवि समिच्छहि उवहि-जले दीसेसइ सई जे धणंजयहो कइ विप्फुरंतु उप्परि धयहो घत्ता महसूयणु जासु सहेजउ सहुं सुरेहिं पुरंदरु विज्जउ । तुहुं कण्ण जइ वि अइ भल्लउ ण पहुच्चहि तहो एक्कल्लउ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy