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रिट्ठणे मिचरिउ
घत्ता मच्छर-भरिएण आयरिएण पंचवीस सर पेसिय। धम्म-विवज्जिय गुण-वज्जिय णं कु-सीस परिसेसिय।।
[१४] तिहि-मि धणु धट्ठज्जुणहो भग्गु सुकलत्तु जेम करे अवरु लग्गु वाणेण मरण-करणेण जाम । किर विंधइ कण्णे छिण्णु ताम किउ वारह खंडई आसुएहिं पंचहिं पंचहिं गुरु गुरु-सुएहिं विणिभिण्णु णवहिं मद्दाहिवेण वीसहिं सई कुरुव-णराहिवेण तिहिं दूसासणेण धणुद्धरेण पंचहिं सउवलेण व दुद्धरेण ते सव्वायामें धणु-गुणेण तिहिं तिहिं णिसिद्ध धट्ठज्जुणेण एत्तहे वि सउणि णउलहो पलित्तु वच्छत्थले कण्णिय-सरु णिहित्तु विहवलेण विमुक्क पिसक्क सहि दोहाइय मामहो चाव-लट्ठि
घत्ता अवरें वाणेण भिडमाणेण रणे आयामिउ सउवलु। कहवि ण मारिउ ओसारिउ सूएण वण-विहलंघलु ।।
[१५] तो भिडिय परोप्परु अमरिसेण महि-कारणे कुरुवइ-भीमसेण सर पंच मुक्क दुजोहणेण णव भीमें रिउ-मइ-मोहणेण छत्तीसेहिं कुरुव-णराहिवेण छच्चावई छिण्णइं पत्थिवेण वर गय पट्ठविय विओयरेण वंचिज्जइ कुरु-परमेसरण तो आसत्थामहो ढुक्कएण सो छिण्णु पलंव-महाभुएण वहु थूणा-कण्णहिं गुरु-सुएण ++++++++++++++ भड-भीयर-समर-कियायरेण सउ वाणहं मुक्कणिसायरेण दोणायणु रुहिरारुणिय-गत्तु मुच्छाविउ चेयण कहव पत्तु
घत्ता पहउ पिसक्केण लल्लक्केण संसय-भावहो ढुक्कउ । कह-वि पयत्तेण णिउ जत्तेण मुच्छाविहलु घुडुक्कउ॥
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