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सत्तरिमो संधि
सुरधणु-धीरइं धणुवरइं लेवि पत्थेण मुक्क सर पंचवीस तो भोजक-वंसाहिवेण विद्ध कवरेण करिसिय-कम्मुएण पंचहिं पर देहावरणु भिण्णु विहलेण-विकाया-भंतिएण तहिं वीसहिं विद्धु अजायसत्तु उद्धाइउ सत्ति-सणाहु णाहु
कियवम्म-जुहिट्ठिल भिडिय वे-वि णं भीम भुवंगम भुअण-भीस धणु छिदेवि सत्तहि पडिणिसिद्ध धणु दसहिं वियारिउ तव-सुएण उरे अवरेहिं पवर-सरेहिं भिण्णु धणु अवरु लेवि जउ-वंसिएण धुरि दसहिं खुरुप्पेहिं छिण्णु छत्तु कियवम्महो हउ दाहिणउ वाहु
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घत्ता
तेणवि तजिउ किउ कजिउ वइहत्थिए सर-जालेण। णडु स-संदणु तव-णंदणु गंथु जेम वहु-कालेण॥
__ [१७] जं णरवइ संसय-भावे छुद्ध तं चंपाहिवहो विराडु कुद्ध णारायहिं णवहिं थणंतराले विणिभिण्णु भयंकरे समर-काले तेण-वि तेहत्तरि-मग्गणेहिं धय-चामर-छत्त-वलग्गणेहिं विणिवारिउ सारहि णिहय वाह उरे भिण्णु वियारिय वाम-वाह मुच्छाविउ दाविउ दप्प-साडु णिय भिच्चहिं ओसारिउ विराडु तो रणु पडिलग्गु स-संदणाहं सहएव-दिवायर-णंदणाहं वित्थारिय-जगे-जस-मंडवेण सर वीस विसज्जिय पंडवेण हय विहिं पंचासिहिं रवि-सुएण सत्तरिहिं विद्ध णउलाणुएण
घत्ता छिण्णु वरत्थेण रहु पत्थेण विप्फुरंतु सय-चंदउ। किउ अवलेवेण सहएवेण करे स-खग्गु वसुणंदउ ।।
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