________________
__ इकहत्तरिमो संधि ताम जडासुर-सुएण समक्खें कुरुव-राउ वोल्लाविउ रक्खें वणे णिवसंतु अतुलु माहप्पे जणणु महारउ आयहो वप्पे घाइउ जेण तेण रणे मुच्चमि हउं जे एक्कु तिहुअणहो पहुच्चमि हियवोवरि कर-पल्लव ढोएवि अच्छहि णाह णिहालउ होएवि कुरु-परमेसरेण मोक्कल्लिउ जाहि जाहि लहु हत्थुत्थल्लिउ ८
घत्ता भीम जडासुर-णंदण वाहिय-संदण दिण तूर किय कलयल। पंडव-कउरव-किंकर भुअण-भयंकर भिडिय घुडुक्कालंवल॥
वे-वि णिसायर समर-कियायर वे-वि रणुद्धय गिद्ध-महद्धय विण्णि-वि वियवर रहिय-वरंवर दुइ-वि भयावह पइसाविय-रह दइ -वि महोयर रिउ-जम-गोयर दुइ-वि धणुद्धर सुरह-मि दुद्धर वे-वि स-विक्कम सक्क-परक्कम दुइ-वि स-मच्छर तोसिय-अच्छर दुइ-वि दुराणण जिह पंचाणण दुइ-वि वलुद्धर जिह सुर-सिंधुर दुइ-वि स-मलहर जिह णव जलहर तो लल्लक्केहिं दसहिं पिसक्केहिं किउ हय-संदणु भीमहो णंदणु सो-वि पहरिसिउ धणु जिह वरिसिउ वि-रहु अलंवलु किउ विहलंघलु
घत्ता वज-दंड-सम-सारेहिं मुट्ठि-पहारेहिं हणेवि परोप्परु पीसिउ । मंदर-खीर-समुद्दहं विहि-मि रउद्दहं णाई विमट्ठ पदीसिउ॥
१६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org