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रिट्ठणे मिचरिउ
घत्ता किय णरेण पइज जइ ण णिहउ चंपाहिवइ। तो होसइ भीम महु-वि अज्जु तउ तणिय गइ।।
[३] एवं भणेवि णरु धाइउ कण्णहो वलिउ भीमु दूसासण-सेण्णहो जहिं तूरइं समुद्द-घण-घोसई जहिं कुरु-किंकर-सयइं सरोसइं जहिं पहरणई सिला-सिय-धारइं सिह-फुलिंग-रवि-किरणागारइं जहिं णरवइ कड्डिएहिं किवाणेहिं जहिं हय मणि-खइयहिं पल्लाणेहिं संदणेहिं सोवण्णेहिं चक्केहिं जहिं गइंद वजंतेहिं ढक्केहिं जहिं अविरलई महा-धय-छत्तई जहिं णवंति चामरइं चलंतई तहिं रहु वाहिउ पावणि-सूएं वलु अवलोइउ णं जम-दूएं अहो किव-कण्ण-कलिंग-सुसेणहो आसत्थाम-सउणि-विससेणहो
घत्ता पच्चारिय सव्व जो सक्कइ सो उत्थरउ। महु कोव-हुवासें लहु दूसासणु पइसरउ ।।
[४] लेहु लेहु आहणहु भणंतेहिं वेढिउ कुरु-साहणेहिं अणंतेहिं छाइउ पहरणेहिं अपमाणेहिं विजुल-माला-फुरण-समाणेहिं छिंदइ ताई भीमु विहिं हत्थेहिं णं जेमइ कयंतु विहिं हत्थेहिं के-वि पाइक्क पिसक्केहिं वारिय के-वि गयासणि-घाएहिं चूरिय झंप देवि गयणंगणे होती काह-मि कह-मि करइ समसुत्ती वीस-तीस-पंचास-विहत्तेहिं पडिवउ रहे आरुहइ णियत्तेहिं पडिवउ करणु देवि कु-वि मारइ खगवइ जिह भुवंग संघारइ चूरिय दस सहास मायंगहं दस जे महाजाणेय-तुरंगहं
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या
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घत्ता
थिय कुरुव णिरास वलु दिण्णउं तुज्झु
को-वि ण भीमहो अभिडइ। करि कयंत जं आवडइ ।
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