SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० ४ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता किय णरेण पइज जइ ण णिहउ चंपाहिवइ। तो होसइ भीम महु-वि अज्जु तउ तणिय गइ।। [३] एवं भणेवि णरु धाइउ कण्णहो वलिउ भीमु दूसासण-सेण्णहो जहिं तूरइं समुद्द-घण-घोसई जहिं कुरु-किंकर-सयइं सरोसइं जहिं पहरणई सिला-सिय-धारइं सिह-फुलिंग-रवि-किरणागारइं जहिं णरवइ कड्डिएहिं किवाणेहिं जहिं हय मणि-खइयहिं पल्लाणेहिं संदणेहिं सोवण्णेहिं चक्केहिं जहिं गइंद वजंतेहिं ढक्केहिं जहिं अविरलई महा-धय-छत्तई जहिं णवंति चामरइं चलंतई तहिं रहु वाहिउ पावणि-सूएं वलु अवलोइउ णं जम-दूएं अहो किव-कण्ण-कलिंग-सुसेणहो आसत्थाम-सउणि-विससेणहो घत्ता पच्चारिय सव्व जो सक्कइ सो उत्थरउ। महु कोव-हुवासें लहु दूसासणु पइसरउ ।। [४] लेहु लेहु आहणहु भणंतेहिं वेढिउ कुरु-साहणेहिं अणंतेहिं छाइउ पहरणेहिं अपमाणेहिं विजुल-माला-फुरण-समाणेहिं छिंदइ ताई भीमु विहिं हत्थेहिं णं जेमइ कयंतु विहिं हत्थेहिं के-वि पाइक्क पिसक्केहिं वारिय के-वि गयासणि-घाएहिं चूरिय झंप देवि गयणंगणे होती काह-मि कह-मि करइ समसुत्ती वीस-तीस-पंचास-विहत्तेहिं पडिवउ रहे आरुहइ णियत्तेहिं पडिवउ करणु देवि कु-वि मारइ खगवइ जिह भुवंग संघारइ चूरिय दस सहास मायंगहं दस जे महाजाणेय-तुरंगहं ८ या ४ घत्ता थिय कुरुव णिरास वलु दिण्णउं तुज्झु को-वि ण भीमहो अभिडइ। करि कयंत जं आवडइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy