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छायासीइमो संधि
एक्क-दु-वहु-वयणई संधिय-सर-णियरइं
घत्ता
धाउ-णिरायण-करणइं। वलइं णाई वायरणइं॥
४
तहिं अवसरे पंडवहं स-वूहहं कोडि-भडाहं सहास-वरूहहं तिण्णि सहास मत्त-मायंगहं दस सहस उव्वरिय-तुरंगहं कुरु-वले कोडिउ तिण्णि मणूसहं । विण्णि लक्ख हयवरहं स-भूसहं सहसेयारह रहहं रउद्द
दस सहास मय-मत्त-गइंदह एम चउव्विह किय परिमाणहं पंडव-कुरुव-वलहं भिडमाणहं किं पि ण सुम्मइ धण-गुण-सदें काहल-संख-मउंद-णिणदें मयगल-गल-गल्लरि-उग्गारेहिं रहवर-पवर-चक्क-चिक्कारेहिं हय-हिंसण णर-णरवइ-हक्केहिं ओएहिं अवरेहि-मि लल्लकेहिं
घत्ता कलयलु पूरइ कण्ण रण-रए दिट्टि ण पसरइ। रुहिरे ण जाणहं जाइ तो-वि को-वि भडु पहरइ ।।
कहि-मि कहि-मि उच्छलिय-महारउ विहि-मि वलहं णं ढुक्कु णिवारउ ण किउ वयणु णं उप्परि धावइ पत्त-विहुरु गउ भजेवि णावइ भडहं परोप्परु पडिलग्गंतहं असि-वरोह-हम्मत-हणंतहं जाय-घाय-संघाय गइंदहं णं उप्पण्ण खयाल गिरिंदहं रुहिरुइं णिग्गयाइं उग्गालेहिं णं सलिलई पासाय-पणालेहिं रेल्लउ महि-रेल्लंतु पधावइ दइवें रण-रसु पीलिउ णावइ तहिं तेहए संगामे भयंकरे हड्ड-रुंड-विछड्ड-णिरंतरे स-धणु धणंजउ भिडिउ तिगत्तहं णं केसरि करिवरहं पमत्तहं
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