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रिट्ठणे मिचरिउ
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घत्ता
गोवद्धणु जेण समुद्धरिउ सो केण पराजिउ समर-मुहे
कालिउ दमिउ कंसु वहिउ। केसउ कामपाल -सहिउ ।।
णवमउ वासुएवु अवइण्णउ पडिकेसव-विणासु उप्पण्णउ कोडि-सिला सि जेण उच्चाइय जइयतुं सच्चहाम करे लाइय उद्ध करावहि तुलिय तिविढे उत्तमंगु तणुरंत-दुविढे कंठावहि सयंभु अहिहाणे पुरिसुत्तमेण उरेत्ति पमाणे पुरिस-सीह-णामेण हि पत्ती पुंडरीय-पहुणा कडि-मेत्ती ऊरु-पमाण उच्चाइय दत्तें जाणुच्छेह सुमित्ता-पुत्तें चउरंगुल-मज्जाय उवेदें किज्जउ संधि समउ गोविंदें णउ अ-पमाणु होइ रिसि-भासिउ अम्हहं धुउ विणासु तहो पासिउ
घत्ता जहिं णर-णारायण-साहणइं अतुल-वलइं पत्थिव-साराई। अण्णण्णइं तहिं मेलाइयज्ञ किं करंतिं तुम्हाराई।।
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जहिं एक्कक्क पहाण महारह गय-दुंदुहि-अंकूर-विओरह सिणि-अणिरुद्ध-संवु-मयरद्धय । विम्हि-सुभाणु-भाणु-भोयंधय सच्चइ-चारु-जेडु दसारुह पंडव पंच-वि सम-विसमाउह कउरव खयहो णीय जेहिं आहवे तो को जिणइ जियंत महाहवे तुहं वेयारिउ अलइय-णामेहिं तिहिं किव-कियवम्मासत्थामेहिं गुरु-वहे कवणु कवणु किर जुज्झिउ पइं परमेसर कज्जु ण वुज्झिउ णउ लग्गणउ को-वि सयणिजउ कालजमणु एक्कु पर सहिजउ तं णिसुणेवि णरवइ आरुट्ठउ विसहरु विस-दोसें दुट्ठउ
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