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अट्ठासीइमो संधि जावय-लोउ तो-वि अवलोयहि जो जसु मल्ल तासु तं ढोयहि
घत्ता णिय विजा-पाणे सयलु वलु रुप्पिणि-पुत्तें रखियउ। जइ एत्तिउ पत्तु ण महुमहणु तो जरसंधे भक्खियउ॥
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[दुवई] मागह-सूय-वंदि-वेयालिय-वहलुच्छल्लिय-मलहरो।
जुत्त-महातुरंग-रहु ढोइउ चडिउ तुरंतु हलहरो॥ गउ कुरुखेत्तहो एक्के पासें रहवरेण सुरगिरि-संकासें जसु पुंजोवमेण णिय-गत्तें सररुह-पंडुरेण वर-छत्तें लंगल-पहरणेण वलवंतें ताल-महाधएण धुव्वंतें तुरय-चउक्कें हंस-वियारें दारु-महत्तरेण जत्तारें गउ तउ जउ सच्चइ जउ माहउ जउ कुरुवाहिव-भीम-महाहउ णं जले विरहिउ सायरु जलहरु णं णिल्लंछणु छण-दिण-ससहरु खीर-महोवहि णं उच्छल्लिउ णं हिमवंतु कहि-मि संचल्लिउ
घत्ता जो पंडव-वल परिवेढियहो गयउ आसि जम-सासणहो। सो णाई णियत्तेवि अण्णमउ आउ जीउ दूसासणहो।
[१७] [दुवई]
आइउ कामपालु रहु छंडेवि पंच पयाई पाएहिं।
देवइ-णंदणु-वि सवडम्मुहु सहुं कुरु-पंडु-जाएहिं ।। हरि अवरुंडिउ रेवइ-कंतें
अंजण-पायउणं हिमवंतें णं लवणोवहि खीर-समुद्दे कालकूड-विस-पुंजु व रुदें णावइ असिय-पक्खु सिय-पक्खें णावइ अलि-गणु पंकय-लक्खें जउण-वाहुणं गंगा-वाहें णं वम्महु चंदप्पह-णाहें
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