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________________ २३१ अट्ठासीइमो संधि जावय-लोउ तो-वि अवलोयहि जो जसु मल्ल तासु तं ढोयहि घत्ता णिय विजा-पाणे सयलु वलु रुप्पिणि-पुत्तें रखियउ। जइ एत्तिउ पत्तु ण महुमहणु तो जरसंधे भक्खियउ॥ __ [१६] [दुवई] मागह-सूय-वंदि-वेयालिय-वहलुच्छल्लिय-मलहरो। जुत्त-महातुरंग-रहु ढोइउ चडिउ तुरंतु हलहरो॥ गउ कुरुखेत्तहो एक्के पासें रहवरेण सुरगिरि-संकासें जसु पुंजोवमेण णिय-गत्तें सररुह-पंडुरेण वर-छत्तें लंगल-पहरणेण वलवंतें ताल-महाधएण धुव्वंतें तुरय-चउक्कें हंस-वियारें दारु-महत्तरेण जत्तारें गउ तउ जउ सच्चइ जउ माहउ जउ कुरुवाहिव-भीम-महाहउ णं जले विरहिउ सायरु जलहरु णं णिल्लंछणु छण-दिण-ससहरु खीर-महोवहि णं उच्छल्लिउ णं हिमवंतु कहि-मि संचल्लिउ घत्ता जो पंडव-वल परिवेढियहो गयउ आसि जम-सासणहो। सो णाई णियत्तेवि अण्णमउ आउ जीउ दूसासणहो। [१७] [दुवई] आइउ कामपालु रहु छंडेवि पंच पयाई पाएहिं। देवइ-णंदणु-वि सवडम्मुहु सहुं कुरु-पंडु-जाएहिं ।। हरि अवरुंडिउ रेवइ-कंतें अंजण-पायउणं हिमवंतें णं लवणोवहि खीर-समुद्दे कालकूड-विस-पुंजु व रुदें णावइ असिय-पक्खु सिय-पक्खें णावइ अलि-गणु पंकय-लक्खें जउण-वाहुणं गंगा-वाहें णं वम्महु चंदप्पह-णाहें ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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