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रिडणे मिचेरिउ णं णव-काल-मेहु छण-चंदें तिह अवरुंडिउ हरि वलहदें परमासीस-पुव्वु संभासिउ पच्छए धम्म-पुत्तु आसासिउ तेण-वि दूरवरुज्झिय-संदणु जयजयकारिउ रोहिणी-णंदणु तिण्णि-वि एक्कहिं मिलिय सणेहा तिण्णि-वि काल-हुवासण जेहा
घत्ता हरि कालउ हलहरु पंडुरउ राउ सुवण्ण-वण्ण-णिलउ । णं वहु-जल-णिज्जल-जलहरहं तइयउ विजु-पुंजु मिलिउ ।।
। [१८]
[दुवई] सव्वहं दिण्णु खेमु संमाणिय सव्वासीस-वयणहिं ।
पुणु पुणु कुरुव-राउ अवलोइउ वाह-भरंत-णयणहिं॥ एत्तहे कुरुव-राउ मणे रुच्चइ एत्तहे णिय-भाइहे ण पहुच्चइ एत्तहे कुरुव-राउ एक्कल्लउ एत्तहे णरु णारायण-भल्लउ एत्तहे कुरुव-राउ जइ ईहइ एत्तहे पंकयणाहहो वीहइ थिउ मज्झत्थीभावें हलहरु कहिउ असेसु स-वइर-वइयरु को जाणइ जउ केत्तहे होसइ तं णिसुणेवि महुसूयणु घोसइ तावं समप्पइ पिहिवि सुधीमहं लउडि-जुज्झु दुजोहण-भीमहं एत्तहे तेत्तहे जाहुं णिरुत्तउं तं पडिवण्णु जणद्दण-वुत्तउं
घत्ता
कुरु-णाहु विओयरु वे-वि जण स-कवय गरुय-गयाउह। वलएवं धरेवि सयं भुएहिं णिय कुरुखेत्तहो संमुह॥
इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
णामेण मउडभंगो अट्ठासीमो इमो सग्गो॥
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