________________
९७
जइ कह व जणेर-वइरु हयउ
तेहत्तरिमो संधि तो सो तुहुँ हत्थहो किं गयउ ८
घत्ता
रइय-वूहु किय-वाल-वह तवउं धरणहं आढत्तउ। कवउ दिण्णु दुजोहणहो तें णिहएं को अवरत्तउ॥
[१०] सुय-वह-कुविएण तेण० पइं स-कसायहो तेण०।
किं सिरु तोडिउ तेण. सिंधव-रायहो तेण०॥ अहिखेउ जं जि किउ अज्जुणहो सच्चइ विरुद्ध धट्ठज्जुणहो दोमइ-कएण केत्तिउ सहहिं करे पहरणु किं ण समुव्वहहि कहिं जाहि पाव अण्णहिं दविउ गुरु-णिंदउ गुरु गुरु-विद्दविउ वीभच्छहो जइ दुगुंछु करहि महु अग्गए तो एवहिं मरहि सोणावइत्ति पलित्तु मणे णं लग्गु धग त्ति दवग्गि वणे पइं घई वारंतहो केसवहो किं खुडिउ ण सिरु भूरीसवहो सर-वर-संथारे णिविठ्ठाहो णं तवसिहि झाणे परिठ्ठाहो लइ पहरणु पहरहु वे-वि जण पेक्खंतु जुहिट्ठिल-महुमहण
घत्ता जाम भिडंति भिडंति ण-वि तावं धरिय वे-वि गोविंदें। ओसारिय जम-वइसवण पइसरेवि मज्झे णं इंदें।
[११] भणइ जुहिट्ठिलु तेण० समर-समत्थहो तेण०।
होतु मणोरह तेण० एवहिं पत्थहो तेण०।। अवहेरि हणेवए जेण किय जय-सिरि दुज्जणहं समल्लविय दुज्जोहणु भुंजउ सयल महि वारवइ देव तुहुँ पइसरहि हउं णउलु भीमु सहएउ गउ स-जडासुरु जहिं किम्मीरु हउ परिवदिउ अमरिसु अज्जुणहो ण-वि को-वि दोसु धट्ठज्जुणहो जसु केरउ जणणु वि सुज्झविउ णिय कवएं कुरुवइ जुज्झविउ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org