________________
रिट्ठणे मिचरिउ
घत्ता जइ परिपालिउ सच्चु पई तो किं महि-मंडलु फुट्टइ। अण्णु चउद्दह अंगुलई रहु हेट्ठामुहउ पयट्टई ।।
[८] जल-लव-लोलहो तेण० रजहो कारणे तेण०।
सच्चु ण रक्खिउ तेण० पइं गुरु-मारणे तेण०॥ रज्जेण एण वसुहाहिवइ वोलाविय वारह चक्कवइ चउद्दह कुलकर चउवीस जिण गय जाहं सुहे वि एक्कइ वि दिण(?) णव वासुएव वलएव णव । सोलहं णाराय पहाण-भव वत्तीस पुरंदर ते-वि मय ण वसुंधर काहं-वि समउं गय परिहवेवि सच्चु गुरु विद्दवेवि वहु वंधव सयण अहिद्दवेवि गइ कवण लहेसहि कवणु सुहु दुव्विसहु सहेव्वउ परम-दुहु जहिं सत्त णरय अण्णण्ण-विह तो भी पलित्तु दवग्गि जिह को अवसरु धम्म-कहाणाहो ओलंभउ देवए राणाहो
पत्ता आएं मइं धट्ठज्जुणेण केसवेण णिहउ कलसद्धउ। जंणर-णंदणु विद्दविउ पावेण तेण सो खद्धउ।
णरेण सरोसेण तेण० वुत्तु विओयरु तेण ।
अजहो लग्गेवि तेण० तुहुंण सहोयरु तेण० ॥ ण जुहिट्ठिल-रायहो भिच्चु हउं हरि लेहि सुहित्तणु अप्पणउं धट्ठजुण सालउ तुहुं-वि णवि णिउ खयहो जेण आयरिय-रवि तो दुमयहो णंदणु परिकुविउ सवडम्मुहु मुक्कु णाई उयउ परमत्थु पत्थ एत्तिउ कहमि दोमइ-कएण सयलु-वि सहमि देव-वि अदेव महु कुद्धाहो को चुक्कइ जमहो विरुद्धाहो पंचालेहिं कवणु ण उवगरिउ एकु-वि ण हियत्तणु संभरिउ गंगेउ सिहंडि ण दोणु मई विणिवाइउ गरुवउ कवणु पई
४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org