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रिडणे मिचरिउ परिरक्ख करेवि जयद्दहहो थिउ सज्जउ महु जीवग्गहहो दुक्कम्महं दुच्चरियहं भरिउ माराविउ मइं दोणायरिउ
घत्ता गुणु छिंदावेवि समर-मुहे विद्दविउ सुहद्दहे तोउ। तेण णएण जुहिट्ठिलहो महि रुच्चइ होउ म होउ।
[१२] ताम विओयरु अमरिस-कुद्धउ णं पंचाणणु आमिस-लुद्धउ गज्जइ जुयंत-मयरहरु जिह हउं वइरिहिं भंजमि माण-सिह मा जाहि अजाय-सत्तु-वणहो वसुमइ म होउ दुजोहणहो वारवइ म पइसउ महुमहणु कलि-केलिउ पेक्खउ अमर-गणु किं णरेण काइं णर-णंदणेण हउं जुज्झमि सहुं गुरु-णंदणेण वासर-पंचमए पंडु-अवहि भुंजावमि णीसावण्ण-महि तो दिण्ण तूर किय-कलयलई पडिलग्गइं पंडव-कुरु-वलई रउ उट्ठिउ कहि-मि ण माइयउ रण-रक्खसु णं उद्धाइयउ रुहिर-णइ जाय पहरण-वसेण णं जीह ललाविय वइवसेण
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घत्ता
पंडव-कउरव-साहणई णहे पेक्खंतहं सुरवरहं
असि-कणय-कुंत-कोयंडेहिं। पहरंति सयं भुव-दंडेहिं ।।
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इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
तेहत्तरिमो सग्गो॥
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