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________________ रिट्ठणे मिचरिउ मुहमारुय-पूरिय- देवयत्तु वाहिय-रहु जमलीकिय- अणंतु पेक्खेप्पिणु णउलु सभाहयासु विससेहो धाइ सव्वसाइ परिवारिउ दोमइ - णंदणेहिं जउ-जमल-भीम-जणमेजएहिं घत्ता परिकुविय मणु महंतु सउणिय-किंकरेहिं पहरण करेहिं [८] पहिलारउ तहिं घाइउ किवेण तइयउ गुरु-सुरण धणुद्धरेण पंचमउ वियारिउ सउवलेण विणिवाइय सव्व कुणिंद तेहिं अण्णेत्त किय-कडमद्दणेण asसारिउ महियले मग्गणेहिं अण्णेत्तहे सच्चइ सच्चवंतु अत्त कुरुहुं-वि खुद्द तोय तेण भयावहेहिं किव - कियवम्म जिय छण-चंद-रुंद-धवलायवत्तु सेयासु कइद्ध कुरुव-कंतु गउ कोवहो तालुयवम्म-णासु मुक्कंकुसु गहो गइंदु णाई सिणि- दुमयंगरुह - जणद्दणेहिं मच्छाहिव - सोमय - सिंजएहिं जें मुक्का सुअवइ - खंडिएहिं विणिय कालायस - सरवरेहिं विजयेण वि हय हय जायवासु मणि- कुंडल-मंडिय-मउड-धारि Jain Education International जिह केसरि मत्त - गइंदहं । दुज्जोहणु भीडिउ कुणिंदहं ॥ वीयउ कियवम्म - णराहिवेण सयमेव चउत्थउ कुरुवरेण अवरेहिं अवरु जिउ वलु वलेण कुरुवाहिव-पमुहेहिं कउरवेहिं सउहत्थेहिं णउलहो णंदणेण घणउलु पवणालग्गणेहिं परिसक्खर पर-वले जह कयंतु णं भिडिय गइंदहं सीह - पोय घत्ता वाहिय-रहे हिं रणे वि-रह किय [९] उम-णंद-भद्दिएहिं दिवसयर - किरण णं जलहरेहिं जावेण वि पाडिउ सीसु तासु सुर - गिरि-वर - सिहर - महाणुकारि १८० For Private & Personal Use Only ४ ४ जय - विजय-विवद्धिय-कोहेहिं । अवमाण- वाण - संदोहेहिं ॥ ९ ८ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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