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________________ १८१ तेयासीइमो संघि दियवरेण-वि छिज्जइ जयहो सीसु दट्ठोठ्ठ-समुब्भडु भिउडि-भीसु तहिं काले रणंगणे दुज्जएण . वोल्लाविउ कण्णु धणंजएण खल खुद्द पिसुण हय दुट्ठ-भाव अहिमण्णहो जिह गुणु छिण्णु पाव परिरक्खहि तिह अप्पणउ पुत्तु विससेणु हणेवउ मई णिरुत्तु घत्ता जं केस-गहणु किउ गो-गहणु सत्तिए विणिभिण्णु घुडुक्कउ। णं फलु दक्खवइ सोणिउ घिवइ जमकाउ करोडिहि ढुक्कउ । [१०] तो पढम-पत्थु पत्थहो पलित्तु णं चित्तभाणु घिय-घडए सित्तु णिहुयारउ अच्छहि दुब्वियड्ड वोलंतु पलज्जहि किं ण संढ कड्डिज्जइ दोमइ दासि जेम पिय-परिहउ सुपुरिसु सहइ केम उत्थरेवि ण सक्किउ तहिं जे काले एवंहिं गज्जिएण कियंत-काले किय णउल-विओयर सावलेव धणु-कोडिए रल्लिय रोड जेवं सहएउ समुक्खय-मंडलग्गु समरंगणे मई सह एउ भगु दुल्लेउ अलेउ अजायसत्तु कह कह व ण णिहणावत्थ पत्तु रहु खंडिउ साउहु सायवत्तु गउ णिय घरु ल्हसिविय दीण-सत्तु ८ घत्ता तुम्हेहिं संढ-तिल महुमहु-महिल अवरेहि-मि हासउ दिज्जइ । महु पेक्खंतहो रिउ खंतहो विससेणु केण जोहिजइ॥ [११] दुद्धरिसहुं धुणिय-धणु-गुणाहं आलाव जाय कण्णुज्जलाहं विससेणु ताम सहुं रहवरेण उच्छेहोहामिय-महिहरेण चल-चक्कवाल-चालिय-धरेण पहरण-गण-भरियन्भंतरेण तोरविय-तुरंगम-पडिछडेण दुप्पवण-पणोल्लिय-धयवडेण धय-मालालिंगिय-णहयलेण वित्थाराऊरिय-महियलेण पारसव-पुंज-परिपिंजरेण धवलायवत्त-जिय-ससहरेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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