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________________ २६ रिट्ठणे मिचरिउ . एवड्ड वार हउं अज्जुणहो एवहिं गुरु तव पच्चारियउ मेल्लिय सुघोस णामेण गय आसंकिउ अण्णु-वि अवगुणहो वलु वलु कहिं जाहि अमारियउ तहो उप्परिणं जम-दिट्ठि गय ८ घत्ता पंडव-पयंड-भुयदंड-धुय-लउडि-घाय-दुव्वाय-हउ। उप्पएवि महारह-पायवहो दोण-विहंगमु कहिमि गउ॥ [८] तहिं अवसरे दूसासणेण णिय-कुल-कित्ति-विणासणेण । पेसिय सत्ति विओयरहो सरि गिरिवरेण व सायरहो।। अद्ध-वहे जे पवण-सुएण छिण्ण चउ-सरेहिं चयारि तुरंग भिण्ण धयरट्ठहो णंदण दुण्णिवार एयारह अंतरे थिय कुमार विंदार-जेट्ठ-विंदाणुविंद धाइय मुक्कंकुस जिह गइंद सुयरिसण-दुब्विमोयण-सुधम्म सु-रउद्द-सुसेण-रउद्दकम्म सुविसाल- णिरिक्खण-कुंडभेड़ जम-चंड-दंड-कोवंड-हेइ स-तुरंग स-सारहि स-रह ढुक्क रवि-किरण-भयंकर सर विमुक्क ते भीमें परिविंधण-मुहेहिं तो सयल-वि लइय सिलीमुहेहिं भड भिंदेवि हेट्ठाणण पयट्ट गुण-धम्म-विहूणहं सा जि वट्ट घत्ता तो कुरुव करेप्पिणु सत्तुयउ पुणु-वि समच्छरु धाइयउ। केत्तहिं दूसासण जीय-जलु जोयइ णाई तिसाइयउ॥ तहिं अवसरे दोणाइरिउ णाई महाघणु उत्थरिउ । पइसेप्पिणु सरवर-णिवहे रहु अप्फालिउ धरणि-वहे ।। पुणु वीयउ लयउ विओयरेण पुणु तइयउ विप्फुरियाणणेण गोवद्धणु णं दामोयरेण अट्ठावउ णाई दसाणणेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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