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रिट्ठणे मिचरिउ . एवड्ड वार हउं अज्जुणहो एवहिं गुरु तव पच्चारियउ मेल्लिय सुघोस णामेण गय
आसंकिउ अण्णु-वि अवगुणहो वलु वलु कहिं जाहि अमारियउ तहो उप्परिणं जम-दिट्ठि गय
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घत्ता
पंडव-पयंड-भुयदंड-धुय-लउडि-घाय-दुव्वाय-हउ। उप्पएवि महारह-पायवहो दोण-विहंगमु कहिमि गउ॥
[८] तहिं अवसरे दूसासणेण णिय-कुल-कित्ति-विणासणेण । पेसिय सत्ति विओयरहो सरि गिरिवरेण व सायरहो।।
अद्ध-वहे जे पवण-सुएण छिण्ण चउ-सरेहिं चयारि तुरंग भिण्ण धयरट्ठहो णंदण दुण्णिवार एयारह अंतरे थिय कुमार विंदार-जेट्ठ-विंदाणुविंद धाइय मुक्कंकुस जिह गइंद सुयरिसण-दुब्विमोयण-सुधम्म सु-रउद्द-सुसेण-रउद्दकम्म सुविसाल- णिरिक्खण-कुंडभेड़ जम-चंड-दंड-कोवंड-हेइ स-तुरंग स-सारहि स-रह ढुक्क रवि-किरण-भयंकर सर विमुक्क ते भीमें परिविंधण-मुहेहिं तो सयल-वि लइय सिलीमुहेहिं भड भिंदेवि हेट्ठाणण पयट्ट गुण-धम्म-विहूणहं सा जि वट्ट
घत्ता तो कुरुव करेप्पिणु सत्तुयउ पुणु-वि समच्छरु धाइयउ। केत्तहिं दूसासण जीय-जलु जोयइ णाई तिसाइयउ॥
तहिं अवसरे दोणाइरिउ णाई महाघणु उत्थरिउ । पइसेप्पिणु सरवर-णिवहे रहु अप्फालिउ धरणि-वहे ।।
पुणु वीयउ लयउ विओयरेण पुणु तइयउ विप्फुरियाणणेण
गोवद्धणु णं दामोयरेण अट्ठावउ णाई दसाणणेण
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