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________________ छासहिमो संधि घत्ता जइ आसिय वा मोक्कल्लिउ दोमइ-परिहवे दुविसहे। तो सव्वु समप्पइ कुरु-वलु किउ विहवत्तणु उत्तरहे। तो-वि जुहिट्ठिल अज्जु हउं करमि विहासिउ भाइ-सउं । दुमय-सुयहे वद्धावणउं भाणुवइहे विहवत्तणउं । थिउ मारुइ उप्परि संदणहो जयकारु करेवि तव-णंदणहो णं केसरि सिहरे महीहरहो णिक्खेवउ दोण-भयंकरहो अप्पाहिउ पहु धट्ठज्जुणहो हउं वत्त-गवेसउ अजुणहो विप्फारिय-धणुवरु तुलिय-सरु । णं तिउरहो समुहु पय? हरु णं मंदर खीर-महण्णवहो थाणंतरु कलस-समुन्भवहो किर ढुक्कइ परिह-पयंग-भुउ रण-भोयण-कंखउ पवण-सुउ गय-साहणु अंतरे ताव थिउ तमि-पाराउट्ठउ तेण किउ सरणियर -णिवारिउ दिसिहि गउ णं जलण-जालु दुप्पवण्ण-हउ पत्ता तो दोणे विद्ध णिडालयले भीमें रोस-वसंगएण। सरु मोडिवि घत्तिउ धरणि-वहे अंकुसु णाई महागएण॥ तो सोणास-महारहेण वुच्चइ सुर-गुरु सच्छिवेण। जाहि विओयर ओसरेवि इत्थु ण सक्कहि पइसरेवि॥ जइ किर अणुमइए महारियए तो मारुइए तुज्झु कहिं तणउं पुणु पावणि पभणइ पणय-सिरु पंचासी वरिसई ताम तउ अणुमइए जेण सो पइसरइ अज्जुणु पइङ गुरुयारियए कुरु-वूहब्भंतरे पइसणउं मयरहर-महारव-गहिर-गिरु णरु णव-जुवाणु किर कवणु भउ केसउ साहिज्जउ जसु करइ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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