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________________ २७ पुणु लइउ चउत्थउ दुम्मुहेण उच्चाइउ पुणु पंचमउ रहु पुणु छट्ठउ वइरि - वियारणेण आयामिउ पुणु सत्तमउ रहु अट्टमउ वि एम स- विग्गहेण ते अट्ठ महा-रहवर णिमिय घत्ता तो अण्णेहिं अण्णेहिं रहे चडेवि उ पुट्ठि देवि दोणायरिउ अज्जुण धणु-गुण-गुंजियउ भीमें सीह - णाउ कियउ [१०] पवि-पुत्तें जं किउ सीह - णाउ खल खुद्द विओयर थाहि थाह तो म भवि सर घिविय वीस पंचहिं अवरेहिं जुत्तारु लिहिउ चउस िविओयरु घिवइ तासु कण्णेण चयारि विमुक्त वाण पंडवेण मुक्क वहु वंस - वाण रवि - सुएण सरेहिं सरोहु छिण्णु घत्ता कण्णहो कोवंडु पंडु-सुएण परिहरइ अवरु चाउ किर करइ करे ताडिउ तिहिं तोमरेहिं उरे Jain Education International [११] णं अमिय-महण-गिरि महुमहेण सेसें असेसुणं धरणि-वहु स- मघेण व धणु अंगारएण णं वाहुवलीसरेण भरहु णं ससहरु लइउ महागण स- तुरंगम - सारहि धूलिकिय झड ण सहंति विओयरहो । पडिवउ णिय - थाणंतरहो ॥ पंचयण्णु ओरुंजियउ । धम्म- पुत्तु आसासियउ ॥ खंडिउ महि-मंडले पडिउ । जइ वि महग्घ - कोडि घडिउ ॥ - स तं धाइउ सरहसु अंगराउ कहिं वलु अमणूसउ करेवि जाहि पहु पासे ठंति किं कहि-मि वीस - धुरंधरु कासु ण जणइ दिहिउ सई मग्गण चाइहे जंति पासु काणीण होंति सइ तुच्छ-दाण गुण-धम्म- रहिय सइ अप्पमाण णिसियरहं विहंजेवि वलि व दिण्णु छाडिमो संधि ताम विओयरेण समरे । कह - विछुद्ध कयंत - पुरे ॥ For Private & Personal Use Only ४ १ ४ १० १ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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