________________
२४७
णवइमो संधि
अच्छइ धम्म-पुत्तु रोवंतउ तुम्हहं मुह-दसणु मग्गंतउ
. घत्ता ण किय संधि दुज्जोहणेण तहिं काले तुहु-मि पच्चक्ख। एवहिं पुत्त-सयहो तणिय मा भाय करहिं अवक्ख ॥
जे मुय ते मुय सोउ ण किज्जइ दस-विहु परम-धम्मु णिसुणिज्जइ पुत्त-कलत्तई मोहण-जालई वंधव वंधु णाई असरालई तडिणि-तरंग-समउ संपत्तिउ णरय-दुक्ख-दुसह-उप्पत्तिउ धणइं इंदधणु-अणुहरमाणइं जोव्वणाई तरु-छाहि-समाणइं जीवियाई जलविंदु-विलासई लायण्णई विजुल-संकासई पेम्मई संझा-राय-वियारइं दविणई गिरि-णइ-पवहागारइं रवि-अत्थवण-समइं अवसाणइं सोहग्गइं णव-कुसुम-समाणई चलई सरीरई सुविणय-भावई विसय-सुहई विस-विसम-सहावई ८
घत्ता आयइं हलहर-कुलयरहं चक्कवइहिं तित्थयराहं । अम्हहं तुम्हहं अवरह-मि थिर-भावई हूवई काहं ॥
[८] जीउ जमोरगेण भक्खिज्जइ असरणे असरणु केण रक्खिज्जइ जइ-वि तुरंगमेहिं णिरु रुंभइ जइ-विलोह-मंजूसहिं छुब्भइ जइ-वि कूव-विवरंतरे घिप्पइ जइ-वि ण रवियर-किरणेहिं छिप्पइ जइ-वि कह-वि पायाले थविजइ तो-वि कयंतें मंडु लइज्जइ . ४ हरिणु व वाहें करि व मइंदें णउले अहि अक्खु व भुयगिंदें वसहु व वग्धे मच्छु वएण व ससि व विडप्पें कवलु गएण व मे सुवण्णु मे धणु मे जोव्वणु मे कलत्तु मे घर मे परियणु मे मे मे भणंतु कड्डिजइ जइ-वि पुरंदरेण रक्खिज्जइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org