SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिट्ठणे मिचरिउ २४८ घत्ता जांवहिं मरणु समावडइ रक्खेवि सक्कइ को-वि ण-वि तावहिं कहिं तणिय गवेस। महि दिज्जइ जइ-वि असेस ।। को-विण जगे जीवहो सयणिज्जउ एकु-वि एक्कहो जणु ण सहेजउ तिहुयणु भमइ जीउ एक्कल्लउ अच्छउ एक्कु अणेयहो भल्लउ अवियण-भावे लइज्जइ काएं वज्झइ मुच्चइ कम्म-विहाएं एक्कु अणेयई मरणइं पावइ ++++++++++++++ एक्कु अणेयइं लेइ सरीरइं एक्कु अणेयई सोसई णीरई एक्कु अणेय वार जं भुज्जइ तहो मेरु-वि वड्डिमए ण पुज्जइ एक्कु अणेय वार जं रुण्णउ तेण जलेण महण्णउ पुण्णउ एक्कु अणेय वार जं दड्ढउ तेण रएण होइ वेयड्ढउ पत्ता जावहिं वाहि समावडइ तावहिं जइ को-वि होइ सहाउ। तो किं सव्वहं मिलियाहं एक्कल्लउ कणइ वराउ । [१०] जइ अण्णत्तण्णु तणु ण समंडइ अण्ण-भाउ जइ सिरु ण पियावइ जइ ण थियई णयणई अण्णत्तणे अण्ण-भाउ जइ सुइहिं विरुद्धउ अण्ण-भाउ जइ होइण घाणउ अण्ण-भाउ जइ जीह ण मग्गइ अण्ण-भाउ जइ करहो ण भावइ अण्ण-भाउ जइ फरिसु ण इच्छइ तो किं रणे वणे दहे पहे छंडइ तो किं सूलारोहणु पावइ तो किं मरइ पयंगु हुवासणे तो किं हरिणु जाइ जहिं लुद्धउ तो किं भमरु जाइ अवसाणउ तो किं झसु गल-पासए लग्गइ तो किं अंगुलि खंडणु पावइ तो किं वंधणु हत्थि पडिच्छइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy