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हणु हणु अजरामरु जइ सरीरु सुय-सोय-परव्वसु भग्ग-घोणु वोल्लाविय कउरव करहु जुज्झु
बाहत्तरिमो संधि हणु हणु परलोयहो जइ ण भीरु णिय जोगब्भासे पइडु दोण्णु छंडियई वरत्थई कहिउ गुज्झु ८
घत्ता
उक्खंति-कालु महु वट्टइ एवहिं आयाउ धुउ मरणु। जो सव्वहं पासिउ वड्डमउ सो देवाहिदेउ सरणु॥
[२०] जो तिहुवण-मत्थए किय-णिवासु परिगलइ पाउ णामेण जासु जसु आण-वडीवा सयल देव जसु तिण्णि-वि लोय करंति सेव जो थुइहिं थुणिजई सयल काल । णमिएहिं णमिज्जइ णाम माल ण मइज्जइ जो पंचिंदिएहिं वंदिजइ सुरवइ-वंदिएहिं भाविज्जइ जो वहु-भावएहिं ण विमुच्चइ सोक्खेहिं थाइएहिं परिचिंतिउ सो देवाहिदेउ उक्कत्ति करेवि गउ भूमि देउ तेयमउ सिहि व जज्जल्लमाणु वंभुत्तर-सग्ग-वलग्गमाणु लक्खिज्जइ तवसुय-संजएहिं किव-पंकयणाह-धणंजएहिं
घत्ता तहिं अवसरे दुमयहो पुत्तेण णरहो धरंत-धरताहो। सिरु छिण्णु सयं-भूव-खगेण दोणहो जीविय-चत्ताहो॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। [णामेणं दोणवहो] बाहत्तरिमो इमो सग्गो॥
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