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रिट्ठणे मिचरिउ वहु-रण-भर-धुर-उद्धरण-खंधु रहु चूरिउ करेवि रहंग-वंधु गय मुक्क सिहंडिहे भायरेण स-वि छिण्ण खुरुप्पे दियवरेण कइकेयण-सालु वसुंधरत्थु धट्ठज्जुणु ढुक्कु फरासि-हत्थु णिय-रह-धुर-तुंडेहिं पाउ देवि पेक्खंतहं सेण्णहं भिडिय वे-वि किवि-कंतें पारावय-णिहंग सत्तिए भिंदेवि पाडिय तुरंग वसुणंदउ सर-लक्खेण भग्गु वइहत्थिय-सहसें मंडलग्गु
घत्ता सरु अवरु लेवि किरि मारइ ता सुहडहं कडवंदणेण । अद्ध-वहे जे किउ दस-खंडई दसहिं सरेहिं सिणि-णंदणेण ॥
[१८]
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किव-कण्णेहिं तो सच्चइ णिसिद्ध धट्ठजणु दोणे पत्तु विद्ध एत्तहे-वि मुवंतें सर-सयाई खत्तियहं वीस सहसइं हयाई णरवइहिं लक्खु कलसद्धएण अक्खोहणि णिहय सवाय तेण गयणंगणि हक्कारंति देव गइ कवण लहेसहि हणेवि देव संघारहि गुरु केत्तिय विरोहि वंभुत्तरे सग्गि सुरिंदु होहि रहु ढोइउ ताम विओयरेण वाहिउ पंचालि-सहोयरेण धणु अवरु लेवि वहु-अमरिसेण विणिहय वसाई सग सूरसेण(?) पंडवेहिं पसंसिउ जण्णसेणि पई मुएवि अवरु को जस-णिसेणि
घत्ता उरु भिंदहि लहु सिरु छिंदहि कुद्धउ भीमसेणु भणइ। पुत्तेण वि तेण किं जाएण जो ण-वि जणण-वइरु हणइ ॥
[१९] तो कीयाकुल-कडवंदणेण अक्कोसिउ गुरु हरि-णंदणेण अहो वंभण सलहिय-खत्त-धम्म कहिं सुद्धि लहेसहि पाव-कम्म पंडवहं हरेवि महि कुरुहुँ देवि वहु जीव-सहासहं सिरइं लेवि जसु कारणे रणे पहरणहं लगु सो आसत्थामु वलग्गु सगु हणु हणु जइ पच्चुज्जिएवि एइ हणु हणु जइ जीविउ जमु ण णेइ
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