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रिट्ठणे मिचरिउ ताम विसज्जिय-ससर-सरासणु दिट्ठ पलायमाणु दूसासणु पभणइ गुरु णासंतु ण लजहि एक्कहो किह समरंगणे भजहि
घत्ता विस-जउहर जूउ केस-गहणु गो-गहु कवडु मंतु करेवि। कहिं एवहिं णासइ णीसुइय जायव-जम-मुहि पइसरेवि॥
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अच्छउ मारुइ पत्थु स-घुडुक्कउ सच्चइ-सरेहिं जे पाणेहिं मुक्कर दोमइ दासि संढ भीमज्जुण एम भणंतओ सि कुरु णिग्गुण पउ एवहिं म देहि विवरेरउ भीमें सिरु तोडेवउ तेरउ तं णिसुणेवि वलिउ दूसासणु जम-भू-भंगुरु लेवि सरासणु छाइउ सिणि-सुउ सरवर-जालें तेण-विसो-वि अणिओह-करालें अंतरे वाहिउ ताम तिगत्तेहिं जय-सिरि-सुर-वहु-रामासत्तेहिं तिण्णि सहास ताहं वइसारिय चउ जुवराय-तुरंगम मारिय सारहि णिहउ महारहु खंडिउ धउ स-पडाउ-वि हासेवि छंडिउ
घत्ता दूसासणु सल्लिउ वच्छयले सो-वि सुसम्में जय-मणहो। पच्छा एवि णिउ सवडम्मुहउ दुजसु णं दुजोहणहो।
[१७] सच्चइ धरेवि ण सक्किउ आएहिं ____ दरय-कुणिंद-कुणीर-किराएहिं णक्कण-तामलित्त-तुक्खारेहिं मागह-सूरसेण-गंधारेहिं अंग-कलिंग-वंग-मंगालेहिं उड्ड-पउड्ड-मुंड-महिपालेहिं आजाणेय-जवण-जउहेएहिं ओयहिं अवरेहि-मि अपमेएहिं तो णारायणेण णरु वुच्चइ अच्छइ आउ गवेसउ सच्चइ दीसइ कंचण-केसरि-चिंधउ रुंजइ जलयरु जय-जस-लुद्धउ पभणइ सव्वसाइ किं आएं णासिउ कज्जु जुहिट्ठिल-राएं जो परिरक्खइ सो-वि विसज्जिउ को पहु णंदइ णाइ-विवज्जउ
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