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________________ १७ पंचसट्ठिमो संधि सव्वेहिं सच्चइ लइउ अक्खत्तें तेण-वि ते आढत्त पयत्तें तिरिय-तोमर-कण्णिय-धाएहिं वइहत्थिय-विवाड-णाराएहिं वच्छदंत-खुर-थूणा-कण्णेहिं एवं सिलीमुहेहिं अण्णण्णेहिं णहे पेक्खंतहं सुरवर-विंदहं दिण्णइं पहरण-णिवह णरिंदहं तोडइ सिर-कमलई कर-पल्लव पाय-पओरु हणिय सर-पल्लव तिण्णि सहासइं हयई हयत्थहं पंच-सयइं वर-खेवणि-हत्थहं __ घत्ता दस सयई गइंदहं मत्ताहं एयारह सय रहवरहं । घाइय वे सहस तुरंगहं केण संख वुज्झिय णरहं॥ । [१४] हय-गय-रह-णरवर-उवगरणेहिं छाइय मेइणि विविहाहरणेहिं वावण-कुमुएरावय-संभव मंद-भद्द-संकिण्ण-मउब्भव संचूरिय(?) मेइणि असेस तंवेरम कइकय-आजाणेय-तुरंगम जं सिणि-णंदणेण सर-सीरिउ तं दूसासणेण वलु धीरिउ दुजोहणेण सेण सु-गवेसिय जे पहाण जोह ते पेसिय एहु गावग्गणु घाय ण वुज्झइ पर सामण्णेहिं अत्थई जुज्झइ तो आढत्तु तेहिं सामण्णेहिं तेण-विते मगणेहिं अग्गण्णेहिं कय पाहण फुटुंति सिलिक्केहिं भग्गई वलइं वलंत-तिडिक्केहिं घत्ता . तो सहस-सयहं पंचहं सयह लक्खहं सीसइं छिण्णइं। जायवेण रणंगणे देवयहो णं ओवाइउ दिण्णइं ।। [१५] णासइ कुरुव-राउ दूसासणु दुम्मुहु चित्तसेणु दुम्मरिसणु तहिं अवसरे परिवड्डिय-वेरें वुज्झइ आसत्थाम-जणेरें सारहि णेहि महारहु तेत्तहे सच्चइ कुरु-कडवंदणु जेत्तहे जे एवहिं जे हयइं कोवंडई अज्ज-वि थरहरंति उरे कंडई जायउ जाउ धणंजय-मग्गे खजउ वलु जिह जगु उवसग्गें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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