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रिट्ठणे मिचरिउ
[२२] तो कण्ण-दोण दुजोहणेण गरहिय असमत्ताओहणेण जइ तुम्हहिं रणु आढत्तु आसि ता हउं ण होंतु सव्वाहिलासि वरे एवमि एवमि दिण्ण पाण भूयह-मि ण लजहं भज्जमाण तहिं काले णियत्तिय-संदणेहिं विससेण-दोण-रवि-णंदणेहिं सइणेयहो लाइय थरहरंत दस दस वच्छत्थले वच्छदंत सउवलेण पंच कउरवेण सत्त अवरेहिं दुइ दुइ काल-पत्त सिणि-णंदणु सव्वेहिं पडिणिसिद्ध धट्ठज्जुण कण्णे दसहिं विद्ध धउ धणुवरु सारहि वर-तुरंग विणिवाइय अवर-वि किय सहंग
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घत्ता
वाण विहलंघलु पंडव-वलु भग्गु भिडंतेहिं पंडवेहिं । महिहे समग्गइं फर-कर-खगई घिवेवि सयं भुव-दंडेहिं॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
सत्तरिमो सग्गो॥
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