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________________ रिट्ठणे मिचरिउ - विघित्त सत्ति उरे लग्गी मुच्छाविय मायरिसहो णंदणु गिरिवर- गरुय - भयंकर -काएं सहिं सरेहिं स-सूय स- संदण पंचहिं पंच - वि सउणिहे भायर ताव जुहिट्ठिलु भिडिउ तिगत्तहं सिवि - अंवट्टाभीरहं भोयहं घत्ता सर-1 - णियर- णिरंतर- भिण्णेण तव-तणउ पडिच्छिउ दोणेण दोण - जुहिट्ठिल भरिय रणंगणे विण्णि वि वावरंति लहु - हत्थेहिं वारुण-वायव- 1 - गिरि- अग्गेयहिं ताम धणंजण लहु-हत्थें सीसु भणेवि वंचिय- पउरंदरि सयल - वि वायवेण उड्डाविय विणि-वि वलई ताम णिद्दइयइं वण-वियणाउराई समसीणई [१९] घत्ता तेहए-वि काले पडिवण्णए पहरंति केवि पडिसद्दणे Jain Education International तामणरेण वुत्तु णिय-सारहि कण्णु दो दुज्जोहणु विवम् सउणि दूसासणु जायव लइ वस-कद्दमे खुत्तइं णिययाणीएं भग्गएण । णाई गइंदु महागएण ॥ नाग - कण्ण दुमे णाइ वलग्गी कह - विसमुह किय- कडवंदणु चूरिउ सीसु गयाणि-घाएं घाइय दह धयरट्टहो णंदण णं खय-दिवसहिं सोसिय सायर मद्द - खुद्द - मालव- सामंतहं सग - मुहं अवरहं मि अणेयहं [२०] पिक्खाविय गिव्वाण णहंगणे पउरंदर कउवेरेहिं अत्थेहिं तामस - सउर-सएहिं अणेयहिं दोणार लइ वंभत्थें धाइउ पुणु पंचालहं उप्परि अज्जुण-भीमेहिं मंभीसाविय सीय - वाय-तम-रय- पच्छइयइं मिहुण थियई णाई - खीणई मुएवि महारह हत्थि-हड । रुहिरे तरंत तरंत भड ॥ तुरिउ महारहु अग्गए सारहि जहिं गुरु-णंदणु रइयारोहणु जहिं विससेणु सल्लु स-सरासणु जाव रहह चक्कई पंगुत्तई For Private & Personal Use Only ५८ ४ ८ १० ४ ९ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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