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________________ १६७५ एक्कु सुघोस रहे एक्कु कयंत-समु तो तावणि-तवण-तणउ हसिउ किं वण्णहि तेण स - सउरि णरु मायंद दोमइ - पाणि- गहे दुज्जोहण वंधणे धण -हरणे जामि जिह जायविंदु वलिउ जमलज्जुण पाडिय गिरि धरिउ ओए वे - विमणिट्ठविय अहवइ समत्तु जइ अणिय - वहे किव - दुज्जोहणहो हउं पच्छए भिडमि घत्ता गिरि-मेरु-पहे अवरेक्कु जमु [१४] Jain Education International कुरुवइ-कियवम्म- किवायरिय एकल्ल अज्जुणु रिउ वहुय सीहो धाइय मत्त गय आयरिय-सुएण सएण धउ पंडवेहिं पिसक्केहिं परिपिहिउ वाणासणु वाणेहिं किउ दु-दलु किउ खेल्लिउ कुरुवइ वि-रहु किउ वलु सयलु-वि सरेहिं कडंतरिउ घत्ता वेढहो हणहो जें सिरु खुडमि [१५] sarishtifu अवरेक्कु अवरे रहे चडियउ । । को जियइ विहि-म कमे पडियउ ॥ ९ मद्दाहिव मंछुडु उल्हसिउ किं मई ण दिड्डु गंडीव - धरु खंडव-खए तालुयवम्म - वहे भयवत्त-जयद्दह - वावरणे जे णिडुरु रिट्ठ-कंठु वलिउ अहि दमि कंसु उवसंघरिउ तो वसुमइ णिप्पंडविथ किय तो णा चडावमि ससि-फलिहे रहु धरहो तुरंगम खेयहो । सउं केसवेण कोंतेयहो ॥ गुरुणंदण - सउणि समुत्थरिय गह मिलेव णाई एकत्थु हुय ते तिहिं तिहिं वाणेहिं णरेण हय तिहिं णरु णारायणु दसहिं हउ दोसायणि जण्णसेणि णिहिउ जत्तारहो तोडिउ सिर-कमलु सउवलु किय-वंधु कलिंगु जिउ णीसीहो करि-कुलु ओसरिउ For Private & Personal Use Only ४ ८ ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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