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रिठ्ठणेमिचरिउ
२२८ अज्जु-वि विविह ताई वाइत्तइं अज्जु-वि ताई जे चामर-छत्तई पहु-वयणावसाणे मणे दुट्ठउ पभणइ धायरठ्ठ आरुट्ठउ
पत्ता एक्कल्लउ तुहुं अम्हई वहुय कवण कीड एह भडयणहो। करि-कुंभ-त्थलई दलंताहो कइ सहाय पंचाणणहो।
[११]
[दुवई] कइ जलणहो सहाय वण-डहणे [कइ] पयंगहो तम[ह] णिवारणे।
एक्कु-वि हणइ वहुय वहुएहि-मि एक्कु ण हम्मइ रणे॥ मुहियए जे पंडव-परमेसर महु जे देहि महु तणिय वसुंधर तुम्हइं तहिं जि काले परिछिण्णी जिणेवि दुरोयरेहिं तहिं दिण्णी तेरह वरिसइं अम्हहुं खंती एवंहिं किंकर सिरेहि विढत्ती णउ भुंजमि णउ देमि कुल-क्खए जो भावइ सो लेउ परोक्खए जइयहुं जयमेयहि विण्णि-वि सग्गिय(?) पंचहिं पंच गाम पुणु मग्गिय तइयतुं स-विणय वाय णिगिण्णी अच्छउ अद्ध ण थत्ति वि दिण्णी एवंहिं को सब्भाउ जुहिट्ठिल विण्णि-वि जयसिरि-गहणुक्कंठुल ८ विण्णि-वि एक-दव्व-अहिलासिय विण्णि-वि गयउर-रण्ण-णिवासिय
घत्ता जिवं तुम्हहुं मई मुसुमूरिएण जिवं मई तुम्हहिं घाइएहिं । महि भुत्ती सोहइ तुम्ह पर कवणु सोक्खु सहुँ दाइएहिं ।
[१२]
[दुवई) तो तव-णंदणेण सण्णाहु समप्पिउ कउरव-णाहहो।
सो-वि पइमु ताम अभंतरे रवि व णवंवुवाहहो॥ रक्खिउ जो ण दोण-गंगेयहिं _कण्ण-सल्ल-पमुहेहिं अणेयहिं सो रक्खिजइ किं मइं लोहें रजहो तणए काइं किर मोहें
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