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________________ अट्ठसट्ठिमो संधि णिहए जयद्दहे दुन्विसहे अम्हहं जयास ण पूरइ । एवहिं को साहारु महु दुजोहणु हियए विसूरइ ॥१ धवलु महारउ तेण तेण चित्तें । थिउ धुर छंडेवि तेण तेण चित्तें। को भरु कड्डइ तेण तेण चित्तें। खंधु समोड्डेवि तेण तेण चित्तें ।। सव्वहं संगरे पहरंताहं ओ मंडु हरंतु धरंताहं किह खुडिउ जयद्दह-सिर-कमलु। दुजोहणु मेल्लइ अंसु-जलु खउ आउ असेसहं सजणहं परिणविय वसुंधर दुजणहं पहु धीरेवि धीरेवि कुरुव-वलु गुरु-णंदणु पभणइ अतुल-वलु परिरोवहि णरवइ काइं तुहुं साहारहि साहणु लुहहि मुहु ण करेवउ परम-विसाउ पइं पहरंतहे सयल मरंति सई जो मुउ सो मुउ किर कवणु छलु अच्छउ चंपाहिउ सल्लु सलु णित्तिंसहो पावहो णिगुणहो हउँ एक्कु पहुच्चमि अज्जुणहो घत्ता सव्वहो लोयहो पीड कर दुव्विसह पुरस्सर कामहो। फग्गुण-माहव विद्धि-कर पर एक्कहो आसत्थामहो। ___ [२] एम भणेप्पिणु तेण० पडिभडे भिडिउ तेण० मेहु महीहरे तेण० जिह ओवडिउ तेण० एम भणेप्पिणु पडिभडे भिडियउ मेहु महिहरे जिह ओवडिउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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