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४३ गुरु-णंदण अमरिस-कुविय-मण एक्कहो-वि एक्कु ण-वि ओसरइ पेक्खंतहो तहो दुजोहणहो गुरु-सुएण धणुहे गुणे करेवि कर तेहत्तरि पुणु णारायणहो सेयासहो दस दस दारुयहो जुहमण्णुहे सत्त रणुद्धयहो पंचहिं गंडीव-लट्टि पहय
अट्ठसहिमो संधि पहरंति परोप्परु के-वि जण एक्कहो एक्कु-वि णउ खउ करइ णीसेसहो कउरव-साहणहो ४ पहिलारा पेसिय सउ-वि सर सउ सट्ठि णरहो णारायणहो णव भीमहो वारह सिणि-सुयहो वत्तीस कणय-वाणर-धयहो ८ छहिं उत्तमोज्जु अट्ठहिं तुरय
घत्ता
सच्चइ-हरि-भीमज्जुणहुं रह-छत्त-धयहिं सर लग्ग। दीहर-विग्गह विसम-मुह णं विसहर दुमेहिं वलग्ग ।।
ताव धणंजउ तेण० विप्फुरियाणणु तेण०। कुविउ गइंदहो तेण० जिह पंचाणणु तेण०॥
तहो रण-रस-रहस-वसुद्धयहो ___सर-सहसु विसज्जिउ गुरु-सुयहो तें पाडिउ हरि-लंगूल-धउ वारहहिं तुरंग-चउक्कु हउ छहिं सारहि सत्तहिं दोण-सुउ मुच्छाविउ कह-वि कह-वि ण मुउ गुरु-णंदणु भणेवि ण घाइयउ किउ णिक्किउ ताम पधाइयउ वाहत्तरि पेसिय तेण सर
जम-राएं णावइ आण-कर सेयांसें ताहं विणासु कउ एक्केक्कउ तिहिं तिहिं झत्ति हउ अवरेक्किं ताडिउ वच्छयले तणु छिंदेवि णिवडिउ धरणियले कह-कह-वि ण मुउ रहे उल्लरिउ णिउ सूएं कहि-मि राउ तुरिउ
घत्ता तो अप्पुणु गंडीव-धरु जिंदइ हेट्ठामुहु होएवि। कवण लहेसमि सुद्धि हउं गुरु-पियर-पियामह घाएवि ॥
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