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रिट्ठणेमिचरिउ
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घत्ता ताव चक्काहिवेण स-हत्थेण पट्ट वद्ध गुरु-णंदणहो। सेणावइ होहि महारउ उप्परि जाहि जणद्दणहो ।
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गुरु-तणयहो दिण्णइं साहणइं रह-माणुस-घोडा-साहणई कालायस-कंस-कवय-धरई पहरण-पब्भार-भयंकरई दुग्गंधई धूम-समप्पहई रिक्खंकई रिक्ख-महारहई गो-महिय भवइ कुसासिरइं खर-केस-तुरंग-केस-सिरई णित्तिंसई रोमु सप्पु खुसई लंवोट्ठ(?)-दंतुर-पट्टिसई कण्णथियावरिया भणई
ओयई अवराइ-मि साहणाई दस सहस गइंदहं मत्ताहं
किंकरहं कोडि पहरंताहं हयवरहं लक्खु रण-भर-सहहं पंचास सहास महारहहं
घत्ता तो दीसइ आसत्थामेण कुरुव-णाहु विहलंघलउ। पंडवेहिं णिवंधेवि छंडिउ णाई कसायहो पोट्टलउ॥
पभणिउ गुरु-सुएण रुअंतएण तुहुं देव देव तुहुं वंधु-जणु पइं होतें धण-धण्णइं वहलई पइं होतें धयइं महत्तरई पई होतें अम्हहुं एहु किय उवयारहो तहो एत्तिउ करमि जिवं अवसरु सारिउ तुहुं तणउ जिवं तुडं वइसारिउ वइसणए
वहु-धाह-पवाह-मुवंतएण तुहुं गुरु तुहुं सामिउ तुहुँ सरणु मणि-कंचण-रयणइं केवलई वाइत्तइं छत्तइं चामरइं वंभणहं कहि-मि किं राय-सिय जिवं पंडव मारमि जिवं मरमि जिवं गउ णिय-तायहो पाहुणउ जिवं अप्पउ दढ हुवासणए
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