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________________ रिट्ठणे मिचरिउ aur कण्णण किर भिज्जइ अवरेहिं तिहिं तावणि रणे ताडिय धज्जुण - णंदणु विणिवाइउ पंडव-जणु असेसु डोल्लाविउ धाउ धाउ धव देहि धणंजय णावेवि सुर-वर- धणु सिय-सेवहो घत्ता जिह मत्त - गइंद जुवे - वि गय दिवसहो सवाए हरंतए भिडिय लिहंत परोप्परु वाणेहिं जाउ महंतु महाह पत्थहुं लद्धवरहं णिवद्ध-तोणीरहं कुरुव-णरिंद-जुहिट्ठिल-सत्तहं दिण्ण-धणहं विहलब्भुद्धरणहं पूरिउ अंतरिक्खु णाराएहिं तेहिं भिडंतेहिं भिण्ण भुवंगम रवि - पंडु-सुयाहं इंदहो आभिड [८] Jain Education International घत्ता [९] तहिं अवसरे आयामिय-भा धट्ठज्जुणु सिहंडि जणमेजउ पंच-वि भिडिय दिवायर - पुत्तहो पंच - वि पंचहिं सरेहिं परज्जिय - सो - विति खंडु सिहंडें किज्जइ ण - विचाव - लट्ठि तहो पाडिय सरु सुअसोम-थणंतरे लाइउ रु णारायण वोल्लाविउ णं तो मारिय सोमय - सिंजय धाइउ सव्वसाइ राहेयहो कहि - मि लवंत (?) - समावडिय । सुरहं नियंतहं अभिडिय ॥ सुड्डु उद्दे मुहुत्ते वहंत छाउ हु गिव्वाण विमाणेहिं कालवट्ट-: इ-गंडीव - विहत्थहुं कंचन - कवयावरिय - सरीरहं सेयासहं सिय- चामर - छत्तहं मित्त - हियहं परिरक्खिय-सरणहं णावणाय णिलणु णाएहिं धर थरहरियस - थावर-जंगम - णिएवि णिरंतरु वावरणु । रावण - रामहं तणउं रणु ॥ १७२ For Private & Personal Use Only ४ ८ ४ ९ मज्झे परिट्ठिय पंच महारह उत्तमोज्जु जुहमण्णु रणुज्जउ विसय-मणहोणं अत्त - णियत्तहो तिहिं तिहिं किय रहचक्क - विवज्जिय ४ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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