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________________ रिठ्ठणेमिचरिउ घत्ता समरंगण-वहु-अवरुंडिउ अण्णेहिं धुणेवि विसाणई। सुहु सुत्त के-वि सिरि देप्पिणु करि-कुंभई उवहाणई॥ के-वि करिवर-कुंभेहिं सघणेहिं थिय लग्गेविणं कामिणि-थणेहिं पसमिउ कुरु-पंडव-संपहारु पवियंभिउ घोरु तमंधयारु परिपूरेवि सयल दियंतरालु णं वलइ गिलेवि सुहु सुत्तु कालु ससि अरुणु परिट्ठिउ ताम गयणे णं आमिस-गासु कियंत-वयणे थोवंतरे थिउ ससि-चिंधु धवलु । णं णहयल-सरे पप्फुल्ल-कमलु णं पुव्व-दिसावहु-सिय-कवोलु तो वसुह-वरंगण-गहण-लोलु दुजोहणु पभणइ ताय ताय तुह अवसरु मारहि पंडु-जाय कइयहं वि महारउ ण किउ कज्जु वइरिहिं जे समिच्छहि देवि रज्जु घत्ता तो वुच्चइ दोणायरिएण मं तुहं कुरुवइ एम भणे। को पंडव जोहेवि सक्कइ देव अदेव वि जाहं रणे॥ ८ हउं जिणेवि ण सक्कमि पंडु-जाय सई पहरहि जइ साहीण-हत्थ एक्केण-वि पत्थें करेवि वप्पु रक्खस-वहे गोत्तहो अंतराले जुज्झावहि एवहिं णिय-सहाय वेयारिउ जेहिं अणेय वार जइ कुरुव णिहम्मइ एक्कु जीवु तुहं घइं मारावेवि सयण साव णिय-सत्तिए जुज्झमि कुरुव-राय किं दोणु पडिच्छइ पंच पत्थ दरिसाविउ तह तह लोह-दप्पु भययत्त-जयद्दह-समर-काले दूसासण-सउवल-अंगराय विस-जउहर-जूयइं किय-णिवार तो होज ण होज्ज व जंवुदीउ गइ कवण लहेसहि पिसुण-भाव ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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