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________________ १४१ अट्ठहत्तरिमो संधि घत्ता दुक्कंतहं तावणि-पावणिहिं सच्चइ सच्चाहिट्ठियउ। णं विहि-मि राहु-अंगराहं अंतरे धूमकेउ ठियउ ।। _ [१५] जाउ महंतु महाहउ ताह-मि जो ण हूउ णउ होसइ काह-मि किंपि ण दीसइ सरवर-जालें जगु कंपाविउ णं दुक्कालें जलु थलु णहु पेलंतु पधाइउ सलह-विंदु जिह कहि-मि ण माइउ ताम पयंगु ढुक्कु मज्झण्णहो तिण्णि सुसम्मे उरयडि कण्णहो लाइय थरहरंत णव पत्थहो एक्कु भल्लु वाणरहो धयत्थहो तूरइं देवि करेप्पिणु कलयलु धाइउ सव्वु अखत्तें पर-वलु केसउ केसहिं धरेवि णिरुद्धउ रहे वलग्गु णरु संसए छुद्धउ घत्ता तो कह व कह व वइहत्थिएहिं तालुयवम्म-खयंकरेण । ओसारेवि वलु मेहउलु जिह करेहिं कढोर-दिवायरेण ॥ दुद्दम-दाणविंद-विणिवायणु जो णायणेहिं वंधु दरिसाविउ पूरिउ पंचयण्णु तो देवें पाय-णिवंधु करेविणु वद्धा एक्कु-वि पउ ण देवि णारायणु ताव तिगत्ताहिवेणोसासिय णं घण-वंधहो घण णीसारिय अवरे णरु णरेण घुम्माविउ वोल्लाविउ णरेण णारायणु सो मइं रह-णिवंधु विहडाविउ तट्ठ पणट्ठ वइरि विणु खेवें णाग-पास-पासेहिं ओवद्धा सुक्के खीलिय जेवं महाघणु गारुडेण अत्थेण विणासिय भीम भुअंग सव्व ओसारिय कह व कह व रह-सिहरु ण पाविउ ८ घत्ता तो चेयण लहेवि धणंजएण पउरंदरिहिं महाउहेहिं। भिजंतु असेसु वि वरि-वलु असरणु णडु दिसामुहेहिं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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