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पत्थ-मूले सिक्खियइं महत्थई दूर वाउ(?) सिक्खविउ अणंते दिण्णु गयायरिएण असक्के कामें सद्द-वेहु सहुं दिट्ठिए तो जोत्तारें वाहिउ संदणु वंचेवि णर-णरिंद जे थोडा
पंचसहिमो संधि देवासुर-विद्दवण-समत्थई दिढ-पहरत्तणु रेवइ-कंते दोमइ-वल्लहेण लहु एक्के को चुक्कइ रिउ णिवडिउ दिट्ठिए कुरु-मज्झेण गयउ सिणि-णंदणु गयणु पियंत जंति णं घोडा
घत्ता
सव्वई दुजोहण-साहणइं एक्क-रहेण णिरुद्धाई। गय-जूहई जिह पंचाणणेण जीविय-संसए छुद्धाइं ।।
[१०] समारंभिओ भीसणो संपहारो विहंगावली-जाय-गयणंधयारो सरुक्करण-संछाइए अंतराले स-माणिक्क- तुटुंत-सण्णाह-जाले खुडिजंत-चूडामणि-छिण्ण-पट्टो ललंतंत-गुप्पंत-पाइक्क-थट्टो दलिजंत-मायंग-कुंभत्थलोहो विणिग्गंत-मुत्तावली-दिण्ण-सोहो ४ पहम्मत-चिंधो खुडतायवत्तो वसा-वीसढो लोहिओहाणुरत्तो स-सीसक्क-छिज्जत-सुंडीर-सीसो सिवा-मुक्क-फेक्कार-पब्भार-भीसो वसा-मेय-मजंत-णच्चंत-भूओ इमो एरिसो संगरो एम हूओ ण सो तत्थ वाहो ण जो भिण्ण-गत्तो ण सो कुंजरो जो धरित्तिं ण पत्तो ण सो संदणो जस्स चक्कं ण छिण्णं ण सो पत्थिवो जस्स अंगंण भिण्णं ण सो किंकरो जेण सीसं ण दिण्णं ण सो सामिओ जेण पासंण रुण्णं ण सेण्णस्स तं तेरिसं आयवत्तं णतं पंडुरं जं च भूमिंण पत्तं पणट्ठा भडा के-वि अण्णे णियत्ता रणे वावरता सुभिजंत-गत्ता १२
घत्ता
गय णव दस वीस तीस तुरय सत्तरि सट्टि असी-वि णर। रणे ओलि णिवद्ध कडंतरेवि पुणु महियले खुप्पंति सर ।।
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