________________
८६
रिट्ठणेमिचरिउ
घत्ता अण्णेत्तहे वहइ रणंगणे रुहिरहो णइ भीसावणिय। ललललइ लोल लालाउलिय जीह णाई कालहो तणिय॥
[९]
८ ।
तहिं तेहए दूसहे दुण्णिवारे कुरु-पंडव-साहण-संपहारे हरि-भीमहिं पेरिउ सव्वसाइ दुम-दूसलएवहं वढि णाई किं अच्छहि वड्डिय-विक्कमाई विणिभिंदइहि वूहई गिरि-समाई उद्दीविउ पुणु गंडीवधारि भुक्खिय-कयंत-वयणाणुकारि लक्खिजइ णउ वि रयंत-थाणु णउ दिट्ठि-मुट्ठि-संधाणु वाणु णिवडंति समच्छर गय-तुरंग सामंत महा-सर-पूरियंग विणिभिण्णइं जूहइं अज्जुणेण णं अवगुण-सयई महागुणेण आवट्टइ फुट्टइ भमइ सेण्णु णं उवहि-सलिलु मंदर-णिसण्णु
घत्ता परिसक्कइ वइरि वियंभइ सधणु धणंजउ जहिं जे जहिं। लक्खिजइ समर-महोवहि रुंड-णिरंतरु तहिं जे तहिं ।
[१०] एत्तहे रणु कुरुव-धणंजयाहं एत्तहे सुर-सोमय-सिंजयाहं एत्तहे-वि विओयर-रविसुयाह दुजोहण-णउलहं सोणुयाह एत्तहे वि दोणु दूसहु पराहं दिवसयरु व गिंभे महीहराहं जोयणहं ण तीरइ भड-सएहिं पंचालेहिं मच्छेहिं कइकएहिं तो तवणीय-तणु-ताण-गत्त हय दोवइ-तायहो तिण्णि पुत्त तिहिं भल्लिहिं सीसई तोडियाई कमलई व मराले मोडियाई तो धाइय दुमय-विराड वे-वि कोवंडई भू-भंगुरई लेवि समकंडिउ खंडिउ छत्त-दंडु तणु-ताणु ताहं किउ खंडु खंडु
घत्ता विहिं भल्लिहिं विहि-मिणरिंदहं छिण्णइं सिरई स-कुंडलई। विहिं विहि-मि विसहर-फुट्टेहिं णाई णिरुद्धई सयदलई॥
८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org