SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८५ चउरासीइमो संधि वार वार भिण्णइं धय-छत्तई पज्झरंति कण्णज्जुण गजई पत्ता रणे कालवट्ट-गंडीवहं मंडलि दिंतहं सर-सयई। णं चंद-सूर परिपेसहं किरणई वाहिरे णिग्णयइं। १० ४ कुंडल-जुवलालंकिय-कण्णे णिय-सारहि वोल्लाविउ कण्णे जइ हउं मरमि किरीडीहे हत्थें तो तुहुं काई करहि परमत्थें वुच्चइ अंगराउ जत्तारें जइ मुउ कह-वि खुरुप्प-पहारें तो सिणि-णयणाणंदुप्पायण मारमि विण्णि-वि णर-णारायण वसुह समप्पमि कुरुव-णरिंदहो पंडव जंतु णयरु गोविंदहो कालिय-कंस-केसि-वल-मद्दणु वोल्लाविउ अज्जुणेण जणद्दणु जइ हउं णिहउ वियत्तण-चावें तो तुहुँ काई करहि सब्भावें परमासीस दिण्ण सुर-मद्दे णंद वद्ध जय जय जय सदें घत्ता अजरामरु होहि धणंजय महु जीविएण-वि जियहि फुडु। कहु कण्णु जाइ सहुँ सल्लेण मइं पहरंतउ पेक्खु छुडु॥ [६] एम चवंत कुंति-कुल-दीवा कण्णज्जुण अभिट्ट पडीवा अंतरु कहि-मि ण दीसइ वाणहं जाउ विवाउ गयणे गिव्वाणहं कउरव-पक्खिएहिं आइट्ठउ जोइसु जोइस-चक्के गविट्ठउ चंद-सूर-तारा-वलु जेत्तहे वद्धावणउं रणंगणे तेत्तहे पंडव-पक्खिएहिं किउ कलयलु तुम्हहं कह उप्पण्णउं केवलु तारा-चंद वलइं जइ वासरे कहिं गय तो पहरहए अवसरे जइ आइच्चहो वलु अत्यंतहो तो णंदणहो समरे पहरंतहो काइं अकारणे करहो पसंसउ जेत्थु कण्हु जउ तेत्थु ण संसउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy