________________
रिठ्ठणे मिचरिउ
१८४
घत्ता
८
तिहुयणहो मज्झे सिट्ठारेण जे जे उत्तम वेस किय। णिय-णिय-वाहणेहिं चडेप्पिणु ते ते पत्थहो पासे थिय॥
[३] अहम-वण्ण चामीयर-वण्णहो । सयल-वि पासे परिट्ठिय कण्णहो विजउ पत्थु पंडव परिओसिय कण्णहो कुरुवेहिं संति पघोसिय भिडिय वे-वि रणु जाउ भयंकरु णं गह-घट्टणे गहहं परोप्परु णं विस-गब्भिणि-भीम-भुवंगहं णं गजंतहं मत्त-मायंगहं णं गोवइहिं विसम-मय-सिंगहं णं केसरिहिं णहर-पडिलग्गहं णं णव-घणहं घोर-णिघोसहं णं सरहहं सरहस-सरोसहं सारहि संचरंति मग्गग्गे रह समंति रह-मंडल-मग्गे तोसिय पंडव कुरुव-विमद्दे किंपि ण सुव्वइ छण-छण-सदें रह-णरवर-गय फोडेवि घाएहिं विण्णि-वि पोमाइय विहिं राएहिं
घत्ता कण्णजुण्ण-वाण-णिवाएहिं भिण्णइं विण्णि-वि साहणइं। ओसरियई सुरवर सयल णहे वण-वियणाउर-वाणाई॥
[४] भिण्णइं वाणेहिं सुरवर-सेण्णइं णट्टइं णहयले मणे आदण्णइं वार वार दिण्णइं वाइत्तई मंदिर-सयई ससायरे पित्तई वार वार परिवड्डिय-कलयलु वार वार छाइज्जइ णहयलु वार वार सर-जज्जरियावणि वार वार भिजति महाफणि वार वार कुरु-पंडव-सेण्णइं पुलउ वहंति होति मसिवण्णइं वार वार रवि रहवरु खंचइ वार वार देवरिसि पणच्चइ वार वार उट्ठइ कडमद्दणु
वार वार किलिकिलइ जणद्दणु वार वार णाराय-सहोसेहिं रुहिरइं उच्छलंति चउ-पासेहिं
४
८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org