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[११]
[दुबई]
ताव रिंद पंच पेक्खंतहो भीमहो भिडिय दोणिहे । पंच महा-सुरिंदणं णिवडिय सग्गहो मणुय - जोणिहे ॥
इंदकेउ - जुयराउ सुअरिसणु पंच-वि रण-रस-रहसुद्दामहो तेण-वि तिहिं तिहिं सरेहिं विहंजिय
विद्धु भीमु सारहि मुच्छाइउ पूरिउ संखु जिणेवि आओहणु सहु साहणेण णड्डु धट्ठज्जुणु
रहवरेण वहंतें भूअहमि ण लज्जहो
घत्ता
पासे अनंतें
किह रणे भज्जहो
[१२]
[दुवई ]
गुरु-सु थाहि थाहि जिह सिर भुय खंडिय काल-पत्तहं ।
पउरव - इंदकेउ - जुयराय- सुयरिसण-विद्धखत्तहं ॥
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पउरउ विद्धखत्तु स-सरासणु
भिडिय पर
सत्थामहो
सीसइं वाहु - दंड परिपुंजिय
पुण-वि तुरंग कहि-मि रहु पाविउ गुरु- सुएण तोसविउ सुजोहणु मं भज्जहु मंभीसइ अज्जुणु
हउं तुहुं विणि-वि अत्थई वुज्झहुं हउं तुहुं विण्णि-वि तोसिय- सुरवर हउं तुहुं विणि-वि पवल - वलुद्धुय
हरं तुहुं विणि-वि विज्जा-भायर हउं तुहुं विण्णि-वि समर- - समत्था हरं तुहुं विणि-वि अणिहय-संदण हउं तुहुं विण्णि-वि वड्डिय - विक्कम हउं तुहुं विण्णि-वि कोति किवी सुय हउं तुहुं विण्णि वि जय सिरि-कंखुय
उं तुहुं विणि-विखत्तिय - दियवर हउं तुहुं विण्णि-विचाव- - विहत्था हउं तुहुं विण्णि-विदोणहो णंदण हउं तुहुं विण्णि-वि सक्क - परक्कम
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चउहत्तरिम संधि
करे गंडीवें होंत । पत्थें मई जीवंतएण ||
हउं तुहुं विण्णि-वि रणउहि जुज्झहुं धम्मपुत्त- दुज्जोहण - किंकर कइ - केसरि - लंगूल-महाधय
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