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________________ १०५ [११] [दुबई] ताव रिंद पंच पेक्खंतहो भीमहो भिडिय दोणिहे । पंच महा-सुरिंदणं णिवडिय सग्गहो मणुय - जोणिहे ॥ इंदकेउ - जुयराउ सुअरिसणु पंच-वि रण-रस-रहसुद्दामहो तेण-वि तिहिं तिहिं सरेहिं विहंजिय विद्धु भीमु सारहि मुच्छाइउ पूरिउ संखु जिणेवि आओहणु सहु साहणेण णड्डु धट्ठज्जुणु रहवरेण वहंतें भूअहमि ण लज्जहो घत्ता पासे अनंतें किह रणे भज्जहो [१२] [दुवई ] गुरु-सु थाहि थाहि जिह सिर भुय खंडिय काल-पत्तहं । पउरव - इंदकेउ - जुयराय- सुयरिसण-विद्धखत्तहं ॥ J Jain Education International पउरउ विद्धखत्तु स-सरासणु भिडिय पर सत्थामहो सीसइं वाहु - दंड परिपुंजिय पुण-वि तुरंग कहि-मि रहु पाविउ गुरु- सुएण तोसविउ सुजोहणु मं भज्जहु मंभीसइ अज्जुणु हउं तुहुं विणि-वि अत्थई वुज्झहुं हउं तुहुं विण्णि-वि तोसिय- सुरवर हउं तुहुं विणि-वि पवल - वलुद्धुय हरं तुहुं विणि-वि विज्जा-भायर हउं तुहुं विण्णि-वि समर- - समत्था हरं तुहुं विणि-वि अणिहय-संदण हउं तुहुं विण्णि-वि वड्डिय - विक्कम हउं तुहुं विण्णि-वि कोति किवी सुय हउं तुहुं विण्णि वि जय सिरि-कंखुय उं तुहुं विणि-विखत्तिय - दियवर हउं तुहुं विण्णि-विचाव- - विहत्था हउं तुहुं विण्णि-विदोणहो णंदण हउं तुहुं विण्णि-वि सक्क - परक्कम - - चउहत्तरिम संधि करे गंडीवें होंत । पत्थें मई जीवंतएण || हउं तुहुं विण्णि-वि रणउहि जुज्झहुं धम्मपुत्त- दुज्जोहण - किंकर कइ - केसरि - लंगूल-महाधय For Private & Personal Use Only ४ ८ ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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