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रिट्ठणे मिचरिउ
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घत्ता किं वहु-वाय-वित्थरेण एत्तिउ परमत्थु महंतु। खज्जइ माणुसु माणुसेण जइ जिण-धम्मु ण होतु ॥
जीवें धम्म एम मंतेवउ वोहि-समाहि-लाहु चिंतेवउ जम्मे जम्मे महु मंगलगारउ होउ सामि अरहंतु भडारउ जम्मे जम्मे तव-दंसण-णाणइं संभवंतु सम्मत्त-पहाण जम्मे जम्मे मय-मोह-विणासणे णिम्मल-वुद्धि होउ जिण-सासणे ४ जम्मे जम्मे जिण-धम्मु लइज्जउ जम्मे जम्मे सुह-गइ पाविज्जउ जम्मे जम्मे अजरामर-थत्तिउ संभवंतु जिण-गुण-संपत्तिउ जम्मे जम्मे संसारुत्तरण संभवंतु सल्लेहण-मरणइं जम्मे जम्मे अवहत्थिय-दुक्खइं संभवंतु कम्म-क्खय-सोक्खई
. घत्ता अवयरणाहिसेय-समए णिक्खवणे णाणे णिव्वाणे। जाइं जिणिंदहं मंगलई महु ताइं होंतु अवसाणे।
[१८] कहेवि एव वारह अणुपेहउ पभणइ णव-घण-सामल-देहउ लंवइ सूर-विंवु आयासहो जामि भडारिए णिय-आवासहो अच्छइ दोण-पुत्तु स-पइज्जउ माण-वडेंसइ कहि-मि स-तिज्जउ दुक्ख-पमुक्कए उत्तउ णारिए ता आसीस दिण्ण गंधारिए णंद वद्ध जय जाहि जणद्दण पालहि पंच-वि पंडुहे णंदण गउ गोविंदु पासे तव-तोयहो पेसणु दिण्णु णराहिव-लोयहो तुम्हहिं सव्वहिं एउ करेवउ सिविरु असेसु अजु रक्खेवउ मई वलएव-सामि अणुणेवउ खंधावारु सयलु रक्खेवउ चक्कु हरेवउ रज-मयंधहो परए भिडेवउ तहो जरसंधहो
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