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पंचासीइमो संधि
घत्ता कल्लए कुरुव-णराहिवहो तव-णंदण भीमु हणेसइ। भंजेवि विओयरु गयासणिए णिय-पाएहिं मउडु मलेसइ॥
गय-दिणे दूसासणु णिट्ठविउ भययत्त-जयद्दह सूर-सुय । गंगेउ सिहंडें जज्जरिउ सव्वहं सर-सीरिय-खत्तियहं जमलेहि-मि जमलीहूयएहिं जरसिंधु हणेवउ समरे मई जं वोल्लिउ तेत्थु जणद्दणेण गउ णियय-णिहेलणु महुमहणु
जम-णयरु स-भायरु पट्टविउ ते तिण्णि-वि पत्थहो हत्थि मुय धट्ठजुणेण दोणायरिउ परिसंख करेसहो केत्तियह असि-कुंत-वराउह करे किएहिं मारेवउ तव-सुय सल्लु पई तं इच्छिउ पंडुहे णंदणेण पडिवालउ दिणमणि-उग्गमणु
घत्ता
तूरइं देवि भयंकरइं कलयल-रउ करेवि महंतउ। वलु णीसरिउ जुहिट्ठिलहो णं जगु जे सई भुंजंतउ॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
संधि पंचासीइहे कण्णवहो समत्तो॥
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