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________________ रिठ्ठणे मिचरिउ २०० । घत्ता केसरि-विक्कमु विजु-वलु सुर-करि-कक्ख-सहत्थु । तं सेणावइ करहि तुहुं जो पंडव जिणेवि समत्थु । [१३] तो पर-वल-सलिलुड्डोहणेण गुरु-पुत्तु वुत्तु दुजोहणेण तुहुं अम्हहं दोणायरिय-समु वड्डारउ वुद्धिए कज्ज-खमु संगामुव्वरियए णर-णिवहे सेणावइ किज्जइ कवणु कहे दोणायणि अक्खइ पत्थिवहो करि पट्ट-वंधु मद्दाहिवहो सो पंडव जिणेवि समत्थु रणे परिओसिउ कुरुव-णरिंदु मणे गउ सल्लहो पासु गइंद-गइ वसु-हत्थु कयंजलि विण्णवइ देहि खंधु चहुट्टए समर-भरे सेणावइ होहि पसाउ करे तो मद्दाहिवेण समच्छियउ रण-भरु णिय-सिरि णं पडिच्छियउ ८ घत्ता कल्लए पंच-वि पंडु-सुय णिठ्ठवमि करेप्पिणु जुज्झु । वसुमइ छत्तइं वइसणउं दुजोहण अप्पमि तुज्झु॥ [१४] महि परए पेक्खु णिप्पंडविय वारमइ दसारुह-छंडविय ण णरिंदु ण भीमु ण महुमहणु ण धणंजउ जमलहो णेक्कु जणु ण धरित्ति ण छत्तु ण वइसणउं पर होसइ सायरे पइसणउं परिओसु पड्दिउ पत्थिवहो । विणिविद्धु पटु मद्दाहिवहो जिह दोणहो जिह णइ-णंदणहो जिह कण्णहो किय-कडमद्दणहो तिह णंद वद्ध जिय-पंडु-वलु उज्जालि महारउ मुह-कमलु तो कहिउ चरेहिं दामोयरहो रणे पटु वद्ध मद्देसरहो णारायणु समरुक्कंठुलहो गउ सरहसु पासु जुहिट्ठिलहो ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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