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पंचासीइमो संधि
दिवे दिवे चिंतवइ विणासु मणे
लइ जं होसइ तं होउ रणे
घत्ता
देंतु आसि जो पेसणइं गंगेय-दोण-किव-कण्णहं। __सो दुजोहणु अज्जु हउं उवसेव करमि किह अण्णहं॥ ९
[११] संतणु विचित्तवीरिय-अवहि परिपालिय जेण-वि सयल महि सो केम सेव अण्णहो करमि भुव जाम ताम करि वावरमि गुरु-पियर-पियामह खयहो गय सामंत सहोयर पुत्त-सय अंगई ढिल्लारीहुआई
संसार-सुहई अणुभूयाई अ-पमाणइं दाणई दिण्णाई जस-कुसुमई जगे विक्खिण्णाई वर-वइरि-कुलई संतावियई वहु-सयणइं उण्णइ पावियई गुरु वंदिय देवय-पुज्ज किय महि पंडुसुयह ण समल्लविय वे वाहउ हियवउं होउ छुडु महु एवंहिं मरणु जे रज्जु फुडु
घत्ता तो पोमाइउ णरवइहिं सच्चउ धयरट्ठहो पुत्तु। पोत्तउ गंगा-णंदणहो दुजोहणु होहि णिरुत्तु ।।
__ [१२] दुरुज्झिय-संपय-धणिय-धणु जं कुरुव-राउ थिउ मरण-मणु तं सव्वेहिं समरारंभु किउ जोयणइं विण्णि सण्णहेवि णिउ वइरिहिं हक्कारा पट्टवेवि पुट्टिहिं हिमवंतु परिट्ठवेवि सरसइय डेर(?)रइयाओहणहो किवि विण्णवंति दुजोहणहो सेणावइ कुरुवइ को-वि करे जो खंधु समोड्डइ समर-भरे जो कंवुव-कंठु वग्घ-वयणु जो वसह-खंधु दीहर-णयणु जो गरुड-परक्कमु पवणजउ जो दुंदुहि-सायर-मेह-रउ जो दस-सय-कुंतल-विहुर-धरु जो सधर-धराधर-धीर-धरु
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