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रिट्ठणे मिचरिउ
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घत्ता
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एम भणेवि णं रुहिरु थिउ गय पंडव णिय-णिय-वासहो। हियए विसूरइ कुरुव-पहु महु एक्कु-वि ण हुउ णिरासहो।
[९] ण धरद्धु समप्पिउ पंडवहं आणिउ विणासु पर वंधवहं सउ पुत्तहं सउ जे सहोयरहं ण पमाणु तुरंगम-किंकरहं चूराविय सयल-वि मई जे रणे ण परिट्ठिय सुंदर वुद्धि मणे गंगेउ सिहंडिहे मरइ जहिं जीवेवए अम्हहं कवणु तहिं तो पगुण-गुण-गणलंकरिउ सम्भावें भणइ किवायरिउ णउ अज्जु-वि मइयवट्ट भमइ तउ अज्जु-वि धम्म-पुत्तु खमइ अज्जु-वि महि-अद्ध समल्लवइ अज्जु-वि सो तुहुं जि णराहिवइ अज्जु-वि मद्दाहिउ तुह तणउ कियवम्मु सउणि हउं गुरु-तणउ
घत्ता अज्जु-वि तुज्झु जे वइसणउं सामंत-वि ते-वि तुहारा। अद्धोवद्धिए रज्जु करे जो मुवउ सो मुवउ भडारा॥
[१०] तो पभणइ कुरुव-णराहिवइ । जं माय-वप्प-गुरु सिक्खवइ तं पई सिक्खविउ कज्जे थियए किव णवर ण लग्गइ महु हियए विसु दिण्णु रइय जउ-मंडविय कवडक्खेहिं वसुमइ छंडविय पंचालिहे किउ केस-गहणु वण-वसणु कराविउ गो-ग्गहणु खेत्तु-वि ण दिण्णु मग्गंताहं लज्जिजइ संधि करंताहं अज्जु-वि दोमइ थंडिले सुवइ अज्जु-वि सुहद्द धाहेहिं रुवइ धट्ठज्जुण-वासुएव-ससउ अच्छंति कसाय-सोय-वसउ ते विण्णि-वि संधि करंति किह महु भीमु पलिप्पइ जलणु जिह
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