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________________ रिट्ठणे मिचरिउ १९८ घत्ता ८ एम भणेवि णं रुहिरु थिउ गय पंडव णिय-णिय-वासहो। हियए विसूरइ कुरुव-पहु महु एक्कु-वि ण हुउ णिरासहो। [९] ण धरद्धु समप्पिउ पंडवहं आणिउ विणासु पर वंधवहं सउ पुत्तहं सउ जे सहोयरहं ण पमाणु तुरंगम-किंकरहं चूराविय सयल-वि मई जे रणे ण परिट्ठिय सुंदर वुद्धि मणे गंगेउ सिहंडिहे मरइ जहिं जीवेवए अम्हहं कवणु तहिं तो पगुण-गुण-गणलंकरिउ सम्भावें भणइ किवायरिउ णउ अज्जु-वि मइयवट्ट भमइ तउ अज्जु-वि धम्म-पुत्तु खमइ अज्जु-वि महि-अद्ध समल्लवइ अज्जु-वि सो तुहुं जि णराहिवइ अज्जु-वि मद्दाहिउ तुह तणउ कियवम्मु सउणि हउं गुरु-तणउ घत्ता अज्जु-वि तुज्झु जे वइसणउं सामंत-वि ते-वि तुहारा। अद्धोवद्धिए रज्जु करे जो मुवउ सो मुवउ भडारा॥ [१०] तो पभणइ कुरुव-णराहिवइ । जं माय-वप्प-गुरु सिक्खवइ तं पई सिक्खविउ कज्जे थियए किव णवर ण लग्गइ महु हियए विसु दिण्णु रइय जउ-मंडविय कवडक्खेहिं वसुमइ छंडविय पंचालिहे किउ केस-गहणु वण-वसणु कराविउ गो-ग्गहणु खेत्तु-वि ण दिण्णु मग्गंताहं लज्जिजइ संधि करंताहं अज्जु-वि दोमइ थंडिले सुवइ अज्जु-वि सुहद्द धाहेहिं रुवइ धट्ठज्जुण-वासुएव-ससउ अच्छंति कसाय-सोय-वसउ ते विण्णि-वि संधि करंति किह महु भीमु पलिप्पइ जलणु जिह ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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