________________
३४
रिट्ठणे मिचरिउ
घत्ता ते णिएवि चयारि-वि कुरुव-पहु णाई तिसूलें सल्लियउ। हरि-हर-सइंभुव-वासवेहिं कुसुमवासु णरे घल्लियउ ।।
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
छासट्ठिमो सग्गो॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org