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________________ रिट्ठणे मिचरिउ १५८ घत्ता एम भणेप्पिणु थिउ पुणु-वि किवाण-भयंकरु । दिमु अणंतेण णं विज्जु-लग्गुणव-जलहरु ।। पुच्छइ गिरि-गोवद्धण-धारउ गग्गर-गिरेण कहिजइ पत्थे धरिउ धणंजउ जायव-णाहें अज्जुणु माण-गइंदारूढा ते णर होति णिगोयण-भायण आउ हणंतहं आउ णिहम्मद करि पणिवाउ जुहिट्ठिल-रायहो तो पयंदुरुहइं तव-तोयहो कहो किउ असि वि-कोसु पडिवारउ छिंदमि णियय-सीसु सई हत्थें थोरासण-थेरासण-हत्थे अप्पावह करंति जे मूढा किज्जइ तेण पाणि अप्पायण वड्वारंतहं मोक्खहो गम्मइ मुच्चहि जेण णिवद्ध-कसायहो णमियई णरेण णियंतहो लोयहो ८ । घत्ता ९ मउडु मणोहरु पयवरणहं चंदण-धवलहं । मज्झे परिट्ठिउ णं कणय-कलसु विहिं कमलहं॥ [१४] ण खमइ धम्म-पुत्तु अहिखित्तउ वच्छ वच्छ लइ अत्थु सइत्तउ तुहु जुयराउ विओयरु राणउ होउ सव्व-साहणहं पहाणउ हउं पुणु मुयह मज्झे ण जियंतहं मुहई णिहालमि किह सामंतहं जमल णिएजहि जामि तवोवणु करमि काय-वाया-मण-गोवणु इंदिय दममि महव्वय पालमि सिद्धि-वरंगण-घण-थण लालमि एम भणेवि किर जाइ तवोवणु करयले लगु ताम महुसूयणु कह व कह व णर-णाहुखमाविउ अज्जुणु चरणंदुरुह धराविउ पगुण-गुणग्गिम-गणणा-गोयरु रुण्ण परोप्परु धरेवि सहोयरु ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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