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पंचहत्तरिमो संधि
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घत्ता छिण्णइं सिर-कमलई वाहु-दंड रणे खंडिय। वसुमइ तामरसेहिं णाई स-णालेहिं मंडिय॥
तो सहुं साहणेण पइमु पंडि चंपाहिव वलि पयडंतु खंडि चूण्णंतु दुरय-टंकण-कुणिंद जउहेय-खुद्द-मालव णरिंद गंधार-मद्द-मागह-कुणीर सग-सूरसेण-खस-टक्क-कीर तो मेरु समप्पह-संदणेण वोल्लाविउ दोणहो णंदणेण गंगा-सुय-गुरु-गोविंद-सरिस किव-कण्ण-किरिडी पयाव-दरिस णिरवज्ज-वज-संघणण-देह सुलंब-बाहु पर-वल-णिसेह मई मेल्लेवि मल्लु ण को-वि तुज्झु रहु वाहि वाहि लहु देहि जुज्झु तो दाहिण-महुरा-पत्थिवेण धउ पाडिउ मलय-णराहिवेण
घत्ता तेण वि तहो धउ छिण्णु णवहिं थणंतरे ताडिउ। चउहिं चयारि तुरंग रहु अवरेक्के पाडिउ॥
चउसट्ठि धुरंधर जे वहंति ते अट्ठ महारह समउं जंति णारायहं तीरिय-तोमराह कण्णिय-खुरुप्प-मुहहं सराहं दिवसद्धहो अद्धद्धेण मुक्क गुरु-सुय-भर-पंजरे खयहो ढुक्क पंडिएण विसज्जिउ वायवत्थु तं वि-रहु करेवि तमि किउ णिरत्थु ४ आरूढु महागए णरवरिंदु अइरावइ णं थिउ सुरवरिंदु लहु महुरापुर-परमेसरेण गुरु-तणउ समाहउ तोमरेण तेण-वि तहो सोलह दिण्ण घाय करु एक्के चउहिं करिंद-पाय तिहिं भड-सिरु विहिं वे भुय विहत्त छहिं छज्जण किंकर धरणि पत्त ८
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