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________________ रिष्ठणे मिचरित २२४ [४] ४ [दुवई] सयल-महारहेहि ढुक्कुल्लिउ(ढुंदुल्लिउ?) कुरु केत्तहे ण दिट्ठउ। पुणु उप्पण्ण भंति मणे सव्वहं दुक्करु जले पइट्ठउ॥ सयं जुहिट्ठिलेण जोइयं सरं भमंत-छप्पयं धयारियंवरं कुलीर-कुम्म-मच्छ -डिंडुहाउलं स-सुंसुमार-णक्क-गाह-संकुलं अरण्ण-मत्त-हत्थि-जूह-डोहियं वलाय-चक्क-हंस-कोंच-सोहियं पफुल्ल-पुंडरीय-संड-पंडुरं समीरणाहयं तरंग-भंगुरं पयंग-पाय-वोहियारविंदयं दिवा-पयाव-सुत्त-सप्प-विंदयं मुणाल-काय-कंति-लद्ध-गारवं खलक्खलंति-लच्छि-णेउरारवं तुसार-हार-सार-तीर-फेणयं महा-वलार-वोसरंत-घोणयं अगाह-कद्दमोह-भग्ग-मग्गयं सहाव-भीयरं सहाव-दुग्गयं पत्ता हक्कारिउ कुरुवइ तव-सुएण. एवमि एवमि धुउ मरणु । वरि पहरिउ जणहो णियंताहो ढुक्कउ पंडव-जमकरणु ॥ [दुवई] णिव णिवसंति णवर जले जलयर मणुयह एउ ण जुज्जइ। तुहुं अहिमाणे सुहड-चूडामणि अण्णु-वि पुहविभुजइ॥ उत्तमे सोमवंसे उप्पण्णउ तहो तेत्तियहो छेय आदण्णउ संभरु विसु जउहरु कवडक्खउ केस-गाहु वण-वसणावेक्खउ गो-ग्गहु पंचगावं-अवगण्णणु जण्णसेणि-दासत्तण-मद्दणु णिरवसेस मारावेवि राणा अच्छिउ जले पइसिरेवि अयाणा णीसरु णीसरु आयहो थामहो करि आरंभु पुणु-वि संगामहो जइ पंचह-मि एक्कु पई मारिउ तो महि तुहुं जि भुंजि के वारिउ सरहसु कुरवराउ आहासइ किं हरिणहं हरिणाहिउ णासइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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