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सत्तसट्ठिमो संधि [९] मुहरंगेहिं तुरंगे रंगाविय
खंडिय रहवर कडि कडुवाविय चित्तई णिवडियाइं सामंतहं णिसुढिय वाहु-दंड पहरंतहं कुरुवइ थंभ(?) जाय गइ-भग्गी केवल मरण-चिंत परिलग्गी के-वि चवंति जाहु वरि तेत्तहे फग्गुण-धणु-गुणु-सढुण जेत्तहे ४ । ल्हिक्क के-वि रह-गय-तुरियंतरे । चिंतवंति कि-वि चित्तब्भंतरे जाउ धणंजउ धरेवि ण सक्कहु मरउ जयद्दहु पुरउ ण थक्कहु किहि-मि पहरणाई परिचत्तई केहि-मि ल्हिक्काविय णिय-छत्तई केहि-मि भरिय वाहु सर-दंडेहिं के-विणट्ट लग्गंतेहिं कंडेहिं
घत्ता वण-वियणाउरु करेवि वलु तहो अवजस-सलिल-महद्दहहो। राहु जेम रवि-मंडलहो गउ अज्जुणु भिडिउ जयद्दहहो।
[१०] तो हक्कारिउ सेंधव-राएं पंडव संढ भरिउ जम-राएं वाहि वाहि किं धरहि महारहु हउं सो अच्छमि एहु जयद्दहु विजयासंघ करेवि णिय-खंडए दोमइ जेण हरिय वलिवंडए वूहहो वारि जेण जिय पंडव सीहहो णासेवि गय वेयंड व एम भणेवि भुवइंद-करालें छाइउ अज्जुणु सरवर-जालें णउ तुरंग णउ दीसइ संदणु णउ सच्चइ ण भीमु ण जणद्दणु णउ गंडीउ ण कंचण-वाणरु लग्गु जयद्दहु जिह वइसाणरु भग्गइं वलइं जाइं किय-जत्तइं ताइ-मि तहिं अवसरे परिपत्तई
घत्ता
सएण पत्थु हरि सत्तिरिहिं छहिं सच्चइ सत्तहिं पवण-सुउ। चक्क-रक्ख तिहिं तिहिं हणेवि दुप्पेखु जयद्दहु रवि व हुउ॥
पंडव पहरु पहरु किं अच्छहि तुहं हेवाइउ केहि-मि अण्णेहिं
मई विंधतउ किं ण वि अच्छहि भूरीसव-कलिंग-किव-कण्णेहिं
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