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पंचासीइमो संधि
पाराउट्ठए कुरुव-वले अहिमाण-गइंदारोहणु। तिण-समु मण्णेवि पंडु-वलु पर थक्कु एक्कु दुजोहणु॥
[१] तं वद्धावणउं विओयरहो जउ पत्थहो दिहि दामोयरहो वसुहंतराल-गय-संदणहो सिर-छेउ दिवायर-णंदणहो णर-सर-परिचुंविय वाहणहो पेक्खेवि अवत्थ णिय-साहणहो मं भज्जहो पभणइ कुरुव-पहु मरणेण विढप्पइ अमर-पहु। जीवंतहं जय-सिरि संभव को मई थिए तुम्हहं अहिहवइ तं णिसुणेवि रोस-वसंगयई दस-गुणियइं पंचवीस सयई पायालहं पुरउ परिट्ठियई गय-घाएहिं भीमहो णिट्ठियई धट्ठज्जुण-सरेहिं समाहयइं तट्टइं णट्ठई पिट्ठइं मयइं
घत्ता वुच्चइ कुरुव-णराहिवेण सिहि-गल-गवलालि अणज्जुणु। • रहु जत्तार महु-त्तणउं तहिं वाहि वाहि जहिं अज्जुणु॥
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रहु सणिउ सणिउ सूएण णि णाराएहिं णरवर-णियरु जिउ वलु सीरिउ सोमय-सिंजयहं सामीरणि-सउरि-धणंजयह ताडिय तिहिं तिहिं तोमरेहिं धय पंचाल-मच्छ ओसरेवि गय जो ढुक्कइ तहो तहो देइ झड रह दलइ विहंजइ हत्थि-हड अण्णेत्तहे सउणि समावडिउ सिणि-णंदणु जमलहं अभिडिउ सो तेहि-मि जिणेवि ण सक्कियउ जगडंतु वलई परिसक्कियउ तहिं अवसरे सल्लु झुलुक्कियउ । परिगलिय-पयाउ एवारियउ जज्जरिय-महारहु वणिय-हयउ । वि-सरासणु णर-सर-छिण्ण-धउ परमेसर दइउ ताहं वलिउ वलु तेण तुहारउ णिद्दलिउ
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